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नंदकिशोर आचार्य के काव्य का भाषिक और साहित्यिक वैशिष्ट्य : नई सदी के विशेष संदर्भ में

Journal: RIVISTA (Vol.1, No. 1)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 25-34

Keywords : प्रयोगधर्मिता; बांसुरी; मानवीय मूल्य; संवेदनात्मक अनुभूतियों; भाषिक और साहित्यिक वैशिष्ट्य;

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Abstract

नंदकिशोर आचार्य का लेखन कर्म प्रारंभ से ही भाषिक प्रयोग में निरंतर प्रयोगधर्मी रहा है। भाषा प्रारम्भ से ही इनके आकर्षण का विषय रही है। श्रीआचार्य भारतीय मूल्यों के प्रति विश्वास रखते हुए भी उनमें युगीन परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तन करने के पक्षधर रहे हैं। साहित्य में भारतीय मूल्यों के साथ–साथ तकनिकी विकास के अनुरूप मनुष्यों के आगे बढ़ने से ही मानवीय मूल्यों की स्थापना की जा सकती है। लोकतंत्र की आधारभूमि (मूल शक्ति) प्रत्येक मनुष्य के स्वत्वाधिकारों की रक्षा करना है। भाषा मनुष्यों को तोड़ती नहीं जोड़ती है इसी धारणा के आधार पर वह अपने सरोकारों को पूर्ण कर पाती है। नई सदी की काव्य कृतियों को आधार बनाकर आचार्य के भाषिक और साहित्यिक वैशिष्ट्य को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है जिसमें –मुक्तक छंद, शाब्दिक-विधान में नवीन प्रयोग, उर्दू के शेरों व महाभारत के श्लोक एवं कविता को संदर्भ में दे कर कविता लेखन –‘हाज़िर जवाबी शैली में', परसर्गों का शब्दों से अलग प्रयोग, प्रयोगधर्मिता, ईश्वर संबंधी धारणाओं को भारतीय अद्वेत दर्शन और अस्तित्ववादी दर्शन से भी प्रस्तुत करने का कार्य किया गया है। समकालीन कविता कहती कम और संकेत अधिक करती है इसे इनकी कविताओं में प्रतिफलित होता हुआ अनुभूत किया जा सकता है जो एक साथ एक से अधिक भावों और अनुभूतियों को संवेदना के धरातल पर साकार करती हैं। इनका काव्य भारतीय जीवन मूल्यों से जुड़कर निरंतर सामाजिक और साहित्यिक मूल्यों को आगे बढ़ा रहा है। संवेदनाओं का सूक्ष्मांकन इनकी कविताओं में विभिन्न दार्शनिक, ऐतिहासिक, वैयक्तिक एवं मनोवैज्ञानिक पृष्ठ भूमियों में सांगोपांग रूप में वर्णित हुआ है।

Last modified: 2017-08-15 11:24:54