प्रेमचंद और श्री लंका के कहानीकार मार्टिन र्िक्रमर् ंह की कहार्नय ंमेंअंतर्ित र्चत्रात्मकता
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.5, No. 8)Publication Date: 2017-08-30
Authors : डॉ. आर.के. डी. र्नलंर्त कु मारी राजपक्ष;
Page : 223-227
Keywords : प्रेमचंद; मातटधन तवक्रमतसंह; कहानी; तचत्रात्मकता; अलंकाररकता;
Abstract
प्रेमचन्द (1880-1936) और श्री लंका क े प्रमुख कहानीकार मार्टिन विक्रमसिंह (1890 स े सन् 1976) अलग-अलग देशों से ह ैं फिर भी उनकी कहानियों में बह ुत सी समानताएँ पाई जाती ह ैं। समकालीन होने क े नात े दोनों कहानीकारों की विषयवस्तु पर तत्कालीन समस्याओं का प्रभाव पड ़ा ह ै। प्रेमचन्द तथा मार्टिन विक्रमसिंह की कहानियों में चित्रात्मकता और अलंकारिकता का प्रयोग मिलता ह ै। प्रेमचंद द्वारा विरचित ‘फातिहा', ‘तगादा' तथा मार्टिन विक्रमसिंह की ‘विनोदास्वादय', ‘वहल्लु', ‘धात ु कोलाहलय', ‘बडगिन्न‘, ‘मुदियान्से मामा' तथा‘ अहि ंसावादिया' कहानियों में क ुछ स्थलों का वर्ण न पाठका े ं क े मन म ें एक चित्र सा खिंच जाता ह ै। चित्रात्मक शैली द्वारा दोनों की कहानियों में वर्णि त घटनाआ ें म े ं सजीवता आ गयी ह ै। प्रेमचंद की कहानियों की अलंकारिकता क े प्रयोग क े लिए सुजान भगत, पूस की रात, अलगोझा, पत्नी स े पति आदि कहानियाँ उदाहरण ह ैं। मार्टिन विक्रमसिंह द्वारा विरचित ‘धात ुकोलाहलय', ‘हदँ साक्कि कीम', ‘गॅह ॅणियक', ‘हिस्कबल', ‘उपासकम्मा‘, ‘परकारयाट गल गॅसीम' तथा ‘बेगल‘ आदि कहानियों में अलंकारिकता विद़यमान ह ै। इस प्रकार प्रेमचंद तथा मार्टिन विक्रमसिंह विशिष्ट प्रकार से भाषा में चित्रात्मकता तथा अलंकारिकता लाकर पाठकों को आकर्षित करने में सफल ह ुए।
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Last modified: 2017-09-29 18:07:11