पद्मावत की ऐतिहासिकता
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.6, No. 3)Publication Date: 2018-03-30
Authors : Kumar Manish;
Page : 308-314
Keywords : ऐतिहासिकता;
Abstract
हिन्दी साहित्याकाश में ‘पद ्मावत' द ैदिप्यमान् नक्षत्र है। जायसी ने 16 वीं सदी में ठ ेठ अवधी भाषा मे ं इस महाकाव्य का सृजन किया था। इसकी भाषा की मिठास, भाव सौंदर्य, सूफी अध्यात्म और ऐतिहासिकता देखते नहीं बन पड़ती है। कवि न े इस महाकाव्य का सृजन लोक, कल्पना और इतिहास क े योग से की है। जायसी न े अवध प्रांत की लोकप्रचलित रानी और सुग्गे की कथा में चिŸाौड ़ की रानी पद्मिनी क े जौहर की कथा का सम्मिश्रण कर, ‘पद ्मावत' का सृजन किया है। यह महाकाव्य मध्यकालीन भारतवर्ष का दर्पण है। इसमें तत्कालीन भारतीय समाज की सामाजिक, सांस्क ृतिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक वैभव दिखाई देता है। हिन्दी साहित्य क े विभिन्न विद्वानों न े ‘पद ्मावत' की ऐतिहासिकता की परीक्षा अपन े-अपने ढ ंग से की है। महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्त्रोत ज ैस े- पुरातात्विक अवशेष, शिलालेख, समकालीन साहित्यक ग्रंथ एवं इतिहास की पुस्तकों से इसकी ऐतिहासिकता की परीक्षा संभव है। इस रचना की ऐतिहासिकता की परीक्षा से पूर्व इसके रचनाकार के इतिहास क े विषय में जानकारी प्राप्त करना अनिवार्य है।
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Last modified: 2018-05-16 17:09:31