निमाड ़ की सा ंस्कृतिक लोक चित्रकलाए ें
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.6, No. 3)Publication Date: 2018-03-30
Authors : डाॅ. अंजलि पाण्डेय;
Page : 315-320
Keywords : लोक संस्कृति; रीति-रिवाज; तीज-त्यौहार; जिरोती; मान्यताए;
Abstract
भारतीय लोक कलाऐं जीवन क े आचार-विचार तथा लोक संस्क ृति की नींव स्थापित करती है। निमाड़ की संस्क ृति व सभ्यता, को लोकगीत, लोककथा, लोकचित्रों मे ं द ेखा जा सकता है। विभिन्न तीज-त्यौहारों लोक चित्रों क े बनाने मे ं प्रतीकों का समावेष उनकी सामाजिकता में उपस्थिती को दर्षात े है। अनुष्ठानों क े अवसर पर बनाये जाने वाले चित्रों क े साथ भूमि अलंकरण की एक मांगलिक सुन्दर चित्र परम्परा का समानान्तर विकास हुआ है। भूमि अलंकरण में ज्यामितीय रूप के आकल्पन की प्रमुखता दर्षित होती है। भित्ती चित्रा ें में जीरोती, नाग, क ुलदेवी, दषहरा, भाईदूज, सुर ेती, अहोई अष्टमी, सांझाफूली,दीवाली हात े, मांड़ना, सातिया, चैक कलष आदि प्रमुख है। लोक चित्रों की मूल भावना र ेखांकन की होती है। चित्रण क े लिये लाल, पीला, नीला, हरा, काला और सफेद आंिद प्राथमिक र ंगों को कलाकार पारम्परिक विधि से त ैयार करत े है। लोक चित्रों में र ंग विधान का कोई निष्चित नियम नहीं होता है व चित्रो ं को बनाने की शैलियाॅ ं रूढ़ि की तरह होती है। जीवन की प्रत्येक गतिविधि को चित्रों में व्यक्त करने की कोषिष लोकचित्र कलाकार करता है। वर्तमान आधुनिकता के प्रभाव क े कारण चित्र परम्परा से ज ुडे़ क्रिया कलाप अब कम होते जा रहे है। आवष्यकता है कि इन कलारूप को सहेजा जाए जिसस े यह कला पल्लवित पुष्पित होती रहे।
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Last modified: 2018-05-17 15:36:32