गुप्त गुप्तवंश का प्रशाशन और उसकी विशेषताए
Journal: ANSH - JOURNAL OF HISTORY (Vol.2, No. 1)Publication Date: 2020-06-25
Authors : Nandlal Naran Chhanga;
Page : 30-38
Keywords : ;
Abstract
गुप्त सम्राटों का शासन-काल प्राचीन भारतीय इतिहास के उस युग का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें सभ्यता और संस्कृति के प्रत्येक क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई तथा हिन्दू संस्कृति अपने उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुँच गयी। गुप्तकाल की चहुमुखी प्रगति को ध्यान में रखकर ही इतिहासकारों ने इस काल को ‘स्वर्ण-युग' की संज्ञा से अभिहित किया है। इसी काल को ‘क्लासिकल युग' अथवा ‘भारत का पेरीक्लीन युग' आदि नामों से भी जाना गया है। निश्चयत: यह काल अपने प्रतापी राजाओं तथा अपनी सर्वोत्कृष्ट संस्कृति के कारण भारतीय इतिहास के पृष्ठों में स्वर्ण के समान प्रकाशित है। मानव जीवन के सभी क्षेत्रों ने इस समय प्रफुल्लता एवं समृद्धि के दर्शन किये थे। कुछ पाश्चात्य विद्वानों ने इस काल को भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान का काल माना है। परन्तु इस प्रकार का विचार भ्रामक लगता है क्योंकि इस स्थिति में हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि गुप्त-काल के पूर्व कोई ऐसा युग था जिसमें भारतीय संस्कृति के तत्व पूर्णतया विलुप्त हो गये थे। यह सर्वथा अस्वाभाविक बात होगी। हमें ज्ञात है कि चिरस्थायित्व एवं निरन्तरता हमारी संस्कृति की प्रमुख विशेषतायें हैं। भारतीय संस्कृति के विकास की धारा अबाध गति से प्रवाहित होती रही तथा कभी भी इसके तत्व विलुप्त नहीं हुए। गुप्त-काल में आकर विकास की यह धारा अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गयी तथा यह उन्नति बाद की शताब्दियों के लिये मानदण्ड बन गयी। अत: हम गुप्तकाल को भारतीय संस्कृति के चरमोत्कर्ष का काल मान सकते हैं, न कि पुनरुत्थान का। अपनी इन विशेषताओं के कारण ही गुप्तकाल भारतीय इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णयुग का स्थान बनाने में सफल हुआ हैं।
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Last modified: 2020-06-15 16:05:17