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वैश्विक महामारी में वंचित वर्ग के सामाजिक सरोकार

Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 5)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 69-77

Keywords : सभ्यता और संस्कृति; परंपराएं; रूढ़ियां; वैश्विक महामारी; छुआछूत;

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Abstract

भारत की सभ्यता और संस्कृति बहुत पुरानी है, लेकिन कुछ खास वर्गों ने महत्वपूर्ण बिंदुओं को नकारते हुए भ्रामक और अस्तित्वहीन परंपराएं, रूढ़ियां विकसित कर दी, जिससे लंबे समय तक वे लोग बैठकर खाते रहें। पहले तो लोगों को शिक्षा से वंचित रखा, जिससे उनमें जागरूकता न फैले और उनका विकास बाधित रहे। दूसरा, उन्होंने लोगों पर धार्मिकता का रंग चढ़ा दिया, जिससे वे मर मिटने को तैयार रहें। जिस समय विदेशों में अनेक क्षेत्रों के विद्वान अपने विचार या अवधारणा के सिद्धांतों से लोगों को जागरूक कर शासन के विरुद्ध संघर्षरत थे, उस समय भारत में जाति और छुआछूत का खेल चल रहा था और सारी प्रगति ईश्वर के आशीर्वाद पर निर्भर थी।आज के वैज्ञानिक युग में वे लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे। आज वैश्विक महामारी में जहां विज्ञान द्वारा विकसित दवाओं की आवश्यकता है, वहीं पर सरकार द्वारा भव्य मूर्तियों और मंदिरों का निर्माण किया जा रहा है। जबकि आवश्यकता है विशाल सुख सुविधाओं से युक्त अस्पताल की। इसी विचार को ध्यान में रखकर प्रसिद्ध और चर्चित नाटककार प्रोफेसर सुरेश चंद्र ने अपने नाटक " मंदिर से अस्पताल" की रचना की है। नाटक में स्त्री पात्रों की संख्या 6 है और पुरुष पात्रों की संख्या 19 है। यह नाटक 7 अंकों का है, नाटक के पहले, दूसरे और सातवें अंक में तीन - तीन दृश्य हैं, जबकि तीसरे, चौथे, पांचवें और छठे अंक में दो- दो दृश्य हैं। नाटक‌ की खास बात यह है कि इसमें सभी वर्गों को शामिल किया गया है।

Last modified: 2021-06-20 02:48:34