ग्रामीण सभ्यता पर नगरीय सभ्यता का प्रभाव
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 2)Publication Date: 2021-02-17
Authors : रवि यादव;
Page : 20-23
Keywords : परिवर्तन; मूलसंरचना; औद्योगिकरण; नगरीसंस्कृति; जड़ता; टूटन।;
Abstract
आंचलिक उपन्यासकार शिवप्रसाद सिंह का उपन्यास ‘अलग-अलग वैतरणी' ग्रामंचल पर आधारित एक महत्वपूर्ण उपन्यास है।जिसमें स्पष्टरूप से देखा जा सकता है कि ग्रामीण सभ्यता पर नगरी सभ्यता का क्या-क्या प्रभाव पड़ा है। क्योंकि बिना परिवर्तन के कोई भी समाज अछूता नहीं रहा है। परिवर्तन ही प्रकृति के विकास की जननी कही जाती है, क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का अपरिहार्य एवं आवश्यक नियमहै। इसी परिवर्तन के चलते ही इस पृथ्वी पर जीव जंतुओं के साथ-साथ मनुष्य ने अपना अस्तित्व निर्माण किया है। आज ग्रामीण समाज भी परिवर्तन के प्रभाव से अछूता नहीं रहा। ग्रामीण मूल्यों एवं जीवनशैली में परिवर्तन तीव्र गति से हो रहा है। ग्रामीण समाज अपनी मूल संरचना व मौलिकता को खोता जा रहा है, जिसका स्थान विभिन्न शक्तियों के संघातों एवं नगरीकरण व नगरी सभ्यता के मूल्य लेते जा रहे हैं। परिणामस्वरूप वर्तमान ग्रामीण समाज में नवीन मूल्यों एवं प्रवृत्तियों का जन्म हो रहा है।
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Last modified: 2021-06-21 23:47:30