जमर: चारण जाति की स्त्रियों में प्रतिकार की परंपरा
Journal: ANSH - JOURNAL OF HISTORY (Vol.3, No. 1)Publication Date: 2021-06-01
Authors : मोहन दान;
Page : 47-64
Keywords : जमर; चारण जाति; स्त्रियों में प्रतिकार की परंपरा;
Abstract
इस सृष्टि की रचना और संचालन निगमों के अनुसार होता है। जब जब नियमों के पालन की परंपरा में विचलन हुआ तब तब किसी न किसी ने प्रतिकार कर पुनः व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास किया है। मध्यकाल में राजस्थान, गुजरात, मालवा प्रदेश में रहने वाली चारण जाति को उनकी प्रशासनिक और साहित्यिक योग्यता के कारण और सत्ता की वैधता को जन जन तक पहुचाने की क्षमता के कारण भूमि अनुदान में गांव प्रदान किये गए। जो पूर्णतः स्वायत्त और गैर हस्तांतरित होने के कारण स्वशासन या साँसन कहलाये। जब शासक वर्ग ने उन साँसन गांवों के हस्तक्षेप किया या उस गांव की रैयत को प्रताड़ित किया जब चारणों ने सत्याग्रह किये। पुरुषों द्वारा धरना, तागा और धागा किया गया। वही स्त्रियों ने जमर किये।जमर सती और जौहर से अलग परम्परा थी। सती पति की मृत्यु के बाद पति के मृत शरीर या उसकी निशानी के साथ अग्नि में बैठकर जलने को कहा जाता है। जौहर युद्ध मे पुरुषों द्वारा केसरिया करने या युद्ध की स्थिति में स्त्रियां स्वयम के सतीत्व की रक्षा के लिए आग में कूद पड़ती थी। वही जमर जब सार्वजनिक व्यवस्था को धत्ता बताने वाले कृत्य सत्ताधारियों द्वारा किये गए तब उनका प्रतिकार करने के लिए आग में बैठकर प्राण त्यागे जाते थे। जमर अविवाहित कन्याओं, विवाहित और सधवा स्त्रियों तथा विधवा स्त्रियों( पति की मृत्यु का सम्बध होना जरूरी नही था) द्वारा किये गए। जमर साँसन गांव की रैयत, जो दान ग्रहीता के प्रजा थी के ऊपर जब किसी ने जुल्म किया तब उसका विरोध करते हुए आत्म बलिदान दिया। गोमा, जोमा, हरिया, वीरा, उमा,कलु आदि ने मेघवाल, जाट, दर्जी, माली, खत्री, बनिया आदि के संम्मान के लिए स्थानीय शासकों जैसे जमीदार, जागीरदार और हाकिमों के विरुद्ध
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Last modified: 2021-09-23 13:38:49