SWAMI VIVEKANAND KA MANAV NIRMANKARI SHAIKSHIK DRASHTHIKON
Journal: International Education and Research Journal (Vol.3, No. 5)Publication Date: 2017-05-15
Authors : Anoj Raj Deepti Sajwan;
Page : 287-289
Keywords : स्वामी विवेकानन्द; शिक्षा दर्शन एवं मानव-निर्माण सम्बन्धी विचार।;
Abstract
कहा जाता है कि स्वर्गलोक की सीधी किरणंे भारतभूमि पर पदार्पण करती है इसलिये भारत भूमि सन्तों की स्थायी स्थली है। वैसे तो इतिहास से लेकर वर्तमान तक भारत मे अनेक साधु-सन्त एवं सिद्ध पुरूष हुये। परन्तु चालीस वर्ष से भी कम आयु में जिस युवा-सन्यासी ने देश-विदेश में भारत के वेदान्त दर्शन की अलख जगाई, वह केवल स्वामी विवेकानन्द जी ही थे। अंग्रेजों के कूटनीतिक प्रभाव से अपनी अस्मिता से हीन हो रही भारतीय धरा पर भारतीयों को सजग, सचेष्ट तथा चैतन्य बनाने में स्वामी विवेकानन्द का अभूतपूर्व योगदान है। वास्तव में स्वामी विवेकानन्द आधुनिक मानव के आदर्श प्रतिनिधि हैं। उनके द्वारा दिये गये मानव-निर्माण सम्बन्धी विचार आधुनिक समय में भी प्रेरणादायी बने हुये हैं। स्वामी जी कालजयी महापुरूष हैं और कालजयी महापुरूषों के विचार कभी पुराने नही होते हैं, बल्कि सत्त प्रासंगिक बने रहते हैं। स्वामी जी के शिक्षा दर्शन का लक्ष्य मानव-निर्माण था। शिक्षा को वे इस लक्ष्य की प्राप्ति का सशक्त माध्यम मानते थे। मानव को पूर्णता प्रदान करने हेतु शिक्षा का स्वरूप कैसा हो ? प्राचीन शिक्षा कितनी उपयोगी हो सकती है। अंग्रेजो द्वारा स्थापित शिक्षा हमारे उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कितनी समर्थ है ? मूल्यों पर आधारित शिक्षा का स्वरूप कैसा हो ? इन समस्त प्रश्नों पर स्वामी विवेकानन्द जी के ओजस्वी व क्रान्तिकारी विचारों को जानना ही प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य है।
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Last modified: 2022-04-22 16:25:26