A RELENTLESS TRUTH-SEEKER CINEMATOGRAPHER: K.K. MAHAJAN एक अथक सत्य-साधक सिनेमॅटोग्राफर: के.के.महाजन
Journal: SHODHKOSH: JOURNAL OF VISUAL AND PERFORMING ARTS (Vol.3, No. 1)Publication Date: 2022-01-13
Authors : Shrikant Singh Ashish Madhukar Bhawalkar;
Page : 465-474
Keywords : Cinematic Language; Cinematography; New Wave Cinema; Parallel Cinema;
Abstract
फ़िल्मांकन-शैली की दृष्टि से एक नया सौंदर्यबोध और सिनेमाई भाषा विन्यास को विकसित करने के प्रयासों की दृष्टि से भारत में 1968-1975 के बीच का कालखंड एक विशेष महत्व रखता है। ‘फ़िल्म वित्त निगम' के रूप में एक सरकारी पहल से एक नए तरह का सिनेमा अचानक उभरने लगता हैं। इस योजना में फ़िल्म निर्माण के लिए भरपूर वित्तीय सहयोग का आकर्षण नहीं था अतः मुख्यधारा के सिनेमा के स्थापित निर्देशकों, अभिनेताओं और तकनीशियनों के लिए कुछ खास नहीं था। किन्तु इस नए मंच ने प्रयोगशील प्रवृत्ति और फिल्म संस्थानों से निकले नवोदित फ़िल्मकारों एवं तकनीशियनों को आकर्षित किया क्योंकि इसमें फिल्मों से पैसे कमा कर देने का बोझ भी नहीं था। भारतीय सिनेमा में उभरी इस नई लहर ने फ़िल्म निर्माण विधा के शिक्षित युवाओं को भरपूर मौके दिए। पूना फ़िल्म संस्थान के नए-नए ही निकले सिनेमेटोग्राफर के.के.महाजन को इसी नवाचार से उभरी नई लहर की प्रतिनिधि अधिकांश फिल्मों की सिनेमेटोग्राफ़ी का भरपूर मौका मिला। इतालवी नव-यथार्थवाद और फ्रेंच काव्यात्मक यथार्थवाद से प्रेरित किन्तु अपनी मौलिक सिनेमाई पहचान स्थापित करने वाली कुछ प्रमुख फिल्मों जैसे निर्देशक बासु चटर्जी के साथ ‘सारा आकाश' (1969), निर्देशक मणि कौल के साथ ‘उसकी रोटी' (1970), कुमार साहनी के साथ ‘माया दर्पण' (1972) और निर्देशक मृणाल सेन के साथ ‘कोरस' (1974) में, के.के. महाजन ने विविध निर्देशकों के साथ रचनात्मक साझेदारी करते हुए फ़िल्मांकन की नई शैली विकसित की। यह शोधपत्र सिनेमॅटोग्राफी का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फ़िल्म ‘सारा आकाश' (1969) के पाठ्य विश्लेषण द्वारा सिनेमाई भाषा के उपयोग एवं विकास में के.के.महाजन के एक “ओतर“ के रूप में विशिष्ठ योगदान को जानने का प्रयास करता हैं।
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Last modified: 2022-07-05 19:37:18