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कुमाऊँनी अंचल में रामलीला: पिथौरागढ़ सदर की रामलीला के परिप्रेक्ष्य में

Journal: International Education and Research Journal (Vol.9, No. 8)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 96-97

Keywords : रामलीला; गीता; राम; कृष्ण; कुमाऊँ; पिथौरागढ़;

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Abstract

सामान्य मनुष्य रूप में जन्म लेकर देवत्व को प्राप्त करना और चरित्र की प्रधानता को बताना, संसार में अपने पुरूषार्थ के द्वारा विधाता के विधान को पलटकर कर्म की प्रधानता पर भगवान राम द्वारा जो बल त्रेतायुग में दिया गया था उसी कर्म की प्रधानता को द्वापरयुग में भगवान कृष्ण ने भगवतगीता रूप में जनसामान्य तक पहुँचाया। भगवान का कर्मप्रधानता का संदेश तो गीता ने इस संसार को दे दिया किंतु इस परम ज्ञान को भगवान राम की लीलाओं के माध्यम से जनसामान्य तक पहुँचाने का कार्य रामलीलाओं के मंचन ने किया। भगवान राम द्वारा शासक के साथ ही एक सामान्य व्यक्ति के रूप में अपने मर्यादित चरित्र के द्वारा सम्पूर्ण मानव समाज में जीवन प्रबंध का एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। भगवान राम ने एक पुत्र, एक शिष्य, एक पति, एक भाई और एक मित्र के रूप में जीवन की सभी समस्याओं का सामना किस प्रकार किया जाये इसका एक अनुपम उदाहरण समाज के सामने रखा है। कुमाऊँ क्षेत्र में रामलीला के प्रारंभ की परंपरा अपनी शुरूआत से वर्तमान तक शारदीय नवरात्री के प्रथम दिन से होती आयी है। देश का कोई ऐसा राज्य नहीं वरन् वर्तमान में तो भारत के पड़ोसी देशों के साथ ही अन्य देशों में भी रामलीला मंचन भव्य रूपों में होने लगे हैं। कुमाऊँ क्षेत्र के सभी छोटे-छोटे कस्बों, नगरो, शहरों में भी रामलीला का मंचन अत्यधिक भव्यता के साथ किया जाने लगा है। भगवान राम के जीवन में घटित घटनाओं का स्थानीय स्तर पर अपनी बोली भाषा में रंगमंचीय अभिनय के द्वारा मंचन करना संपूर्ण कुमाऊँ में एक सामान्य बात है।

Last modified: 2023-10-26 15:38:42