ResearchBib Share Your Research, Maximize Your Social Impacts
Sign for Notice Everyday Sign up >> Login

हिन्दी कहानी और उपभोक्तावादी संस्कृति

Journal: Drashta Research Journal (Vol.1, No. 03)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 101-103

Keywords : कहानी; संस्कृति; साहित्यकार; पूंजीवाद; अर्थ-व्यवस्था;

Source : Download Find it from : Google Scholarexternal

Abstract

वर्तमान हिन्दी कहानी के पाठन से एक तथ्य अनायास उभर कर सामने आता है कि स्त्री-विमर्श, दलित चेतना और साम्प्रदायिकता जैसे उग्र मुद्दों पर विचार करते हुए भी हिन्दी कथाकार की आन्तरिक चेतना समाज में उपभोक्तावाद के बढ़ते प्रभाव और उसके भयावह परिणामों पर टिकी हुई है। साहित्य की चाहे कहानी विधा हो जिसमें जीवन के एक पक्ष का वर्णन होता है, चाहे व्यापक जीवन को वर्णित करने वाली उपन्यास विधा क्यों न हो, इन दोनों विधाओं में प्रबुद्ध साहित्यकार अपनी सृजनात्मक शक्ति से इस उपभोक्तावादी मानसिकता के खिलाफ मोर्चाबंदी करता दिखाई पड़ रहा है। पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव समाज के हर वर्ग पर दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। वर्तमान में उन सभी प्रभावों में से शक्तिशाली प्रभाव उपभोक्तावादी संस्कृति का है।

Last modified: 2025-04-12 22:42:20