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स ुमित्रानंदनपंत क े काव्य म ें प ्रकृति-चेतना

Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.3, No. 9)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 1-3

Keywords : स ुमित्रानंदनपंत क े काव्य म ें प ्रकृति-चेतना;

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Abstract

पर्यावरण हमारी प ृथ्वी पर जीवन का आधार ह ै, जो न केवल मानव अपित ु विभिन्न प्रकार के जीव जन्त ुओं एव ं वनस्पति के उद ्भव, विकास एव ं अस्तित्व का आधार है। सभ्यता क े विकास से वर्त मान युग तक मानव न े जा े प्रगति की ह ै उसमे ं पर्यावरण की महती भूमिका है और यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि मानव सभ्यता एव ं संस्कृति का विकास मानव पर्यावरण के समान ुकूल एव ं सामन्जस्य का परिणाम ह ैं यही कारण है कि अन ेक प्राचीन सभ्यतायंे प्रतिकूल पर्यावरण के कारण काल के गर्त में समा गई तथा अन ेक जीवा ें एव ं पादप समूहा ें की प ्रजातियाँ विलुप्त हो गयी और अनेक पर यह संकट गहराता जा रहा है। वास्तव में पर्यावरण कोई एक तत्व नही ं ह ै अपित ु अन ेक तत्वों का सम ूह है आ ैर ये सभी तत्व अथवा घटक एक प्राकृतिक सन्त ुलन की स्थिति में रहत े हुए एक ए ेसे वातावरण का निर्माण करत े है जिसमें मानव, जीव-जन्त ु, वनस्पति आदि का विकास अनवरत चलता रहे। किन्त ु यदि इनमें से किसी एक भी तत्व में कमी आ जाती है अथवा उसकी प्राकृतिक क्रिया में अवरोध आ जाता है तो उसका ब ुरा प्रभाव द ूसर े तत्वों पर भी पड ़ता है, जिससे एक नई विषम परिस्थिति का जन्म होता है। इस विषमता से जलवाय ु, वनस्पति, जीव जन्त ु एव ं मानव पर प ्रतिकूल प्रभाव पड ़ता है। जो जीव जगत के अस्तित्व के लिये संकट का कारण बन जाता ह ै। मानव आ ैर प्रकृति का चिर संब ंध ह ै। ए ेतिहासिक द ृष्टि स े भी मानव का प ्राथमिक स ंबंध प ्रकृति से ही रहा ह ै। वैदिक वांगमय का अन ुशीलन इस बात का साक्षी ह ै कि उस काल के ट्टषि, मुनिया ें की विराट ् चेतना सत्ता क े स्तवन प्रसंग में उषा, सविता, वरूण, चन्द ्र आदि प ्रकृति-तत्त्वों का प ्रच ुर प ्रमाण में वर्णन किया गया है।

Last modified: 2017-09-25 18:58:46