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नदिया ें म ें प्रद ूषण और हम

Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.3, No. 9)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 1-4

Keywords : नदिया ें म ें प्रद ूषण और हम;

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Abstract

जल को बचाए रखना सभी की चिन्ता का विषय ह ै, व ैज्ञानिक राजन ेता, ब ुद्धिजीवी, रचनाकार सभी की चिन्ता है, जल कैस े बचे ? द ुनियाँ को अर्थात पृथ्वी को वृक्षों को, जंगलो को, पहाड ़ों को, हवा को, पानी को बचाना है। पानी का े बचाया जाना बह ुत जरूरी ह ै। पृथ्वी बच सकती ह ै, वृक्ष ज ंगल, पहाड ़ और मन ुष्य, पषु, पक्षी सब बच सकत े ह ै, यदि पानी को बचा लिया गया और पानी प ृथ्वी पर है ही कितना? पृथ्वी पर उपलब्ध सार े पानी का 97ण्4ः पानी सम ुद ्र का खारा जल है, जो पीन े लायक नही ह ै, 1ण्8ः जल ध ु्रवा ें पर बर्फ के रूप म ें विद्यमान है और पीन े लायक मीठा पानी क ेवल 0ण्8ः ह ै जो निर ंतर प्रद ूषित हा ेता जा रहा है। ‘जल ही जीवन है', जल अमृतमय ह ै व ेदों में इसलिए जल की अभ्यर्थना की र्गइ ह ै। जल क े प ्रति कृतज्ञता तो हम व्यक्त कर रहे है, उनकी रक्षार्थ क्या कर रहे है ? सरस्वती तो पहले ही ल ुप्त हो गई थी, गंगा और यमुना भी महानगरा ें क े किनार े प्रद ूषित होती जा रही ह ै उनका मूल अस्तित्व ही खतर े में है, नर्म दा भी धीर े-धीर े प ्रद ूषित हो रही ह ै। कमोवेष सभी नदियाँ सिकुडती जा रही है। कभी लोग नदिया ें के साथ सामंजस्य से रहा करत े थे । जब मन ुष्य असभ्य था, तब नदियाँ स्वस्थ आ ैर स्वच्छ थी। आज जब मन ुष्य सभ्य हो गया ता े नदियाँ मलिन और विषाक्त हो गई है। उन दिनो नदियों में स्व ंय सर्फाइ करन े की क्षमता थी। परन्त ु बढ ़त े हुए प्रद ूषण के कारण नदी अपनी यह क्षमता खोती जा रही है। जल प्रद ूषण के विरूद्ध रण-भेरी बजान े का समय आ गया ह ै। उर्वरकों के अंधाधुध उपयोग से कृषि के लिए हानिकारक कीट तो नष्ट हो ही गए, साथ ही द ूसर े जीव भी समाप्त हो गए।

Last modified: 2017-09-25 19:39:37