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भारतीय चित्रकला म ें ललित कला व लोक स ंस्कृति का समावेश

Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.5, No. 12)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 141-146

Keywords : ललित कला; लोक संस्कृति; चित्रकला; लोककला;

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Abstract

भारत एक प्राचीन सांस्क ृतिक देश है। कला मानव संस्क ृति की उपज है। इसका उदय मानव की सौन्दर्य भावना का परिचायक है। यहाँ की कला एवं संस्क ृति में लोककला का अनूठा समन्वय दिखाई द ेता है। अन ेक विद्वानों न े समय-समय पर लोककला क े महत्त्व को बताया है। लोककलाऐं हमारे द ेश मे ं लोक परम्पराओं संस्क ृति का दर्पण है। जो विभिन्न रीति रिवाज उत्सव में द ेखे जा सकते है। भारत ज ैसें द ेश में विभिन्न प्रान्तों में विविध रूपों में लोककला द ेखी जा सकती है। जो विभिन्न नामों से जानी जाती है। द ैनिक जीवन की इन उपयोगी वस्त ुओं का निर्माण यद्यपि ललित कला के लक्ष्य से नहीं हुआ, तथापि सामूहिक जीवन की कलाप्रियता का अंष हमें इसमें द ृष्टिगोचर होता है और इन्हें कलात्मक वस्तुएँ कहे तो गलत नहीं होगा। सभ्यता क े विकास के साथ-साथ मानव न े अपनी निर्मित वस्तुओं म ें उपया ेगी धारणा का े नहीं छोड़ा परन्तु उसकी कलाप्रियता ने अपनी प्रवाहशीलता द्वारा कुछ मात्रा में उन्हें ललित कला क े लिये सुन्दर उपादान बना दिया। कला के अन्र्त गत चित्रकला, स्थापत्यकला, मूर्तिकला तथा हस्तकला प्रमुख है और सभी कलाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति की दृष्टि से भारत के जन-जीवन में न क ेवल प्रागैतिहासिक युग से अपितु वर्त मान में भी इसका विषेष महत्व द ृष्टिगोचर होता है। लोक संस्क ृति का अहम भाग है लोक कला। यह संस्क ृति का पहचान है जहाँ तक भारतीय लोक संस्क ृति की बात है इसमें लोक कला का विशेष महत्व है। वर्तमान में भारतीय लोक कला अंतर्राष्ट्रीय पटल पर स्थापित होकर लोकप्रिय हो चुकी है क्योंकि भारतीय संस्क ृति में अन ेकता में एकता के साथ आध्यात्मिकता क े भाव भी ज ुड़े है। इसमें सद ैव से मानव कल्याण का भाव भी है। सर्वे भवन्त ु सुखिनः का भाव लोक संस्क ृति का आधार है।

Last modified: 2018-01-22 18:17:33