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राजस्थान की संस्क ृति व उनम ें निहित ला ेकस ंगीत

Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.6, No. 2)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 197-201

Keywords : संगीत; लोकसंगीत; राजस्थान;

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Abstract

'राजस्थान राज्य ज ैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि यह राज्य कई र ंगों से भरा हुआ राज्य हैं, इस प्रदेश का खान-पान, पहनावा यहाँ की लोकसंस्क ृति, लोकवाद्य, लोकगीत, लोकन ृत्य तथा लोकनाट्य जनसमुदाय में अत्यन्त रूप से समाहित दिखाई द ेते है। ला ेक शब्द से तात्पर्य 'लोक' शब्द एक बहुत प्राचीन शब्द है 'लोक' शब्द का अर्थ उस जन समाज से लगाया जा सकता है जो गहराई से पृथ्वी पर फैला रहता है। 'लोक' शब्द एक महत्वपूर्ण जन समुदाय की ओर संक ेत करता है। राजस्थान की लोकस ंस्क ृति म ें प्रयुक्त ला ेकगीत इन लोकगीतों में हमें राजस्थान की लोक संस्क ृति क े दर्शन होते हैं उनका निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है - संस्कार सम्बन्धी ला ेकगीतः- वाधावा, चाक, भारत, जरतजगा, हल्दी, घोड़ी आदि संस्कार सम्बन्धी प्रमुख लोकगीत होत े हैं। न ृत्य सम्बन्धी लोकगीतः- त्यौहार-पर्वों पर किये जान े वाले न ृत्यों में विभिन्न जातियों द्वारा विभिन्न प्रकार के लोकगीत गाये जात े हैं। व्यवसायिक जातियों का लोकगीतः- राजस्थान में अन ेक जातियाँ अपनी जीविका चलाने क े लिये इन लोकगीतों को गाती है। भील जाति के लोकगीतः- भील जाति क े लोगों का जीवन न ृत्य, गीतों एवं हास्य विनोद से परिपूर्ण होता हैं। राजस्थान की लोक संस्कृति को प्रोत्साहन देने में निम्नलिखित संस्थाऐं अत्यधिक योगदान दे रही हैं। उनके नाम है, जवाहर कला केन्द्र जयपुर, पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र उदयपुर आदि। इस प्रकार से हम राजस्थान क े लोक संगीत क े सन्दर्भ में कह सकते हंै कि इनका भविष्य उज्जवल रहेगा।

Last modified: 2018-03-10 18:53:52