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वेणुगोपाल का आत्मसंघर्षऔर कवव-कर्ष

Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.6, No. 8)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 179-188

Keywords : वेणुगोपाल] हिन्दी कहवता;

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Abstract

वेणुगोपाल हिन्दी कहवता मेंहवहिष्ट पिचान रखतेिैं। मोिभंग के वातावरण और सामाहिक यथास्थथहत का आपकी कहवता पर प्रभाव पड़ा। अकहवता की ओर उन्मुख हुए। परंतुिीघ्र िी आपको उसकी प्रहतगाहमता का बोध हुआ। पररणामस्वरूप प्रगहतिील धारा की ओर उन्मुख हुए। यथाथथकी िमीन नेभहवष्य के सुन्दर-सुखद स्वप्ोंको आकार हदया। आपकी कहवता साधारणिन की आिाओं, स्वप्ों, अनुभूहतयों, संवेदनाओंको रूपाकार देती िै। यि उपेहितों- श्रहमकों के प्रहत संवेदना रखतेहुए भी मध्यवगीय कमिोररयों को उिागर करती िैऔर सत्ता के हवरुद्ध मोचेबन्द कारथवािी की प्रस्तावक िै। यि उसके दमन-िोषण-हिंसा का प्रहतकार करतेहुए भी भहवष्य के सुनिरेस्वप् बााँटती िै। इसमेंसत्ता सेमोचेबन्द कारथवािी करतेयुवाओंिेतुरणनीहत और रणकौिल की सामग्री मौिूद िै। किीं-किींयि बहुत हवचारोत्तेिक िैऔर सामाहिक-रािनीहतक यथाथथको रोचक ढंग सेअहभव्यक्त करती िै। इसमेंििााँसंवाद-िैली मौिूद िैविीाँइसकी सांके हतकता बहुआयामी िै। यि कहवता व्यंग्यात्मक मुद्रा लेकर मीहिया की भूहमका को भी प्रश्ांहकत करती िै।

Last modified: 2018-09-06 17:16:47