पारम्परिक कला-संस्कृति से प्रेरित प्रयोगधर्मी कलाकार
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.7, No. 11)Publication Date: 2019-11-30
Authors : डॉ अर्चना रानी;
Page : 172-180
Keywords : पारम्परिक कला; प्रयोगधर्मिता; संस्कृति; समसामयिक; सृजन; सौन्दर्य; आदर्शवादी;
Abstract
भारत की कला-संस्कृति में परम्परा का अनुपसरण सदैव ही दिखाई देता रहा है, बस वह समयानुसार पहले से कुछ नवीन रुप लिये परिलक्षित होता है। वस्तुतः परम्परा का प्रादुर्भाव मानव स्वभाव एवं परिवेश के सामंजस्य से हुआ है। इसके अनेक तत्व एवं मूल्य हैं जो सतत् सर्वाभौमिक एवं गतिशील हैं। अनेक प्रयोगधर्मी समकालीन चित्रकारों ने पारम्परिक कला-संस्कृति को अपने प्रयोगों में समाहित करके नवीन कला-स्वरुपों, प्रत्ययों को जन्म दिया है। फलस्वरुप उनकी कृतियों में समसामयिक जीवन दर्शन की झलक के साथ-साथ परम्परा के दर्शन भी होते हैं जिससे विगत, वर्तमान एवं भविष्य की कला में एकसूत्रता दिखाई देती है। ऐसे प्रयोग जब प्रकट होते हैं तो वह चमत्कार बन जाते हैं। इस सन्दर्भ में चित्रकार यामिनी राय, पी0एन0 चोयल, रामगोपाल विजय वर्गीय, किरन मोन्द्रिया, प्रभा शाह, ललित शर्मा जैसे अनेक नाम उल्लेखनीय हैं। इन सभी ने आधुनिक एवं परम्परा के समिश्रण से भारतीयता लिये समसामयिक कला को नवीन आयाम प्रदान किया।
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Last modified: 2020-01-08 16:34:43
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