ResearchBib Share Your Research, Maximize Your Social Impacts
Sign for Notice Everyday Sign up >> Login

जैन संस्कृति/धर्म में चित्रकला-मण्डल विधान के विशेष संदर्भ में

Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.7, No. 11)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 235-240

Keywords : मण्डल; विधान; धर्म; संस्कृति; रत्नत्रयी; अष्टद्रव्य; अष्टप्रतिहार्य।;

Source : Downloadexternal Find it from : Google Scholarexternal

Abstract

सृष्टी के आरम्भ से ही मनुष्य ने अपनी आवश्यकतओं को पूर्ण करने जिन वस्तुओं का निर्माण किया वह उसकी संस्कृति है - मूर्त रूप और अमूर्त रूप दोनों में। उदा. आवास, वस्त्र व्यवहार, विचार, मनोवृतियाँ, विश्वास, धर्म, कला इत्यादि। काल परिवर्तन के साथ आज मनुष्य प्रौद्योगिकी युग में तो आ गया परंतु मानव मूल्य विहीनता में वृद्धि होती गई। मनुष्य अशांत और अपराधी हो गये। गीता के अनुसार दुर्गुणों में वृद्धि होती गई। महावीर, बुद्ध, गांधी के देश में इस अज्ञान और अंधकार से बाहर आने के अनेक मार्गों में एक है - पूजा-स्तुति, धर्माचरण के मार्ग पर चलकर सदगुणों का विकास करना। जैन संस्कृति और धर्म में सुसंस्कृत जीवन के विकास के लिये परमात्मा, परमेष्ठी की उपासना को आज के मानव की अति आवश्यकता बताई गई है। चित्र शैली में जैन संस्कृति में अनेक उदेश्यो को पूर्ण करने मण्डल विधान की रचना की गई है। यह शोध पत्र इन्हीं मण्डल पर आधारित है।

Last modified: 2020-01-09 15:48:44