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‘‘कफन’’ - कहानी की प्रासंगिकता

Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.8, No. 8)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 132-134

Keywords : कफन; प्रासंगिकता; कहानी;

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Abstract

दिनेश गाँव में छोटा-मोटा बढ़ई का काम करता था। वैसे भी ये बढ़ई जो होते हैं चार दिन अगर काम कर लेते हैं, तो अगले चार दिन दिखाई नहीं देते। इन लोगों को बुलाते-बुलाते गला सूख जाता है। लेकिन इनके सिर पर जूं तक नहीं सरकता। जब दिनेश काम पर नहीं जाता, तो अपने चारों के संग शराब पीने और ताश खेलने निकल पड़ता है। पैसे सब जब खत्म हो जाएं तो महाशय फिर काम करने निकल पड़ते हैं। उसका एक लड़का है मोहन, वह एक सिरफिरा लड़का, काम-धाम कुछ नहीं, हाँ ड्राइविंग सीख लिया था बस। गावें में जौनसन वक़ील की कार चलाने जाता है, वे भी रोज - रोज़ नहीं, बल्कि जब वकील के परिवार में किसी को बाहर कहीं जाना हो तो इसे बुला लिया जाता था। घर पर पड़ा खाता-पीता था, उसे शराब पीने की लत भी थी। मोहन की पत्नी शीतल एक बड़े कपड़े की दुकान में सेल्सगर्ल का काम करती थी। बेचारी सुबह नौ बजे घर का काम और खाना वैगरह बना कर नौकरी पर निकल जाती और शाम सात बजे वापस आती। यूँ कहना होगा कि घर का सारा खर्चा उसे ही संभालना पड़ता था। कभी-कभार रविवार को बाप-बेटे, मछली या मुर्गा खरीद कर ले आते थे, और शराब पीने दोनों बैठ जाया करते, बाद में दोनों में बहुत बहस और झगड़ा शुरु हो जाता, गालियों की वर्षा करने लगते, जिससे आस-पड़ोस के लोग इन दोनों का भला-बूरा कहते। दूसरे दिन बेचारी शीतल लोगों से माफ़ी माँगती फिरती थी। शीतल ने ही ये किराये का मकान लिया था। वही किराया भी देती थी। वह इन दोनों को इसलिए झेलती, क्योंकि उसके माता-पिता का देहान्त हो चुका था और उसका कोई दूसरा बन्धु-मित्र नहीं था। वह बिलकुल लाचार थी।

Last modified: 2020-09-16 12:03:09