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वैश्वीकरण के दौर में बाजार और समाज का अंतर्संबंध

Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 4)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 18-36

Keywords : शिक्षा वैश्वीकरण; बाजारीकरण; संक्रमणकालीन समाज; बाजार औरसूचना प्रौद्योगिकी; वैसुधेव कुटुम्बकम;

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Abstract

जहाँ तक बाज़ार का प्रश्न है, वैश्वीकरण के पहले बाजार केवल मानव-जीवन से सम्बन्धित सीमित चीजों के लिए आवश्यक था और उस समय का बाजार केवल ‘बाजार' की श्रेणी में आता था। जहाँ से सीमित साधनों की पूर्ति होती रही है, लेकिन वहीं बाजार, आज बाजारीकरण की संज्ञा धारण कर चुका है। अब हम नहीं, वह हमें बताने लगा है कि क्या हमारे लिए जरूरी है और क्या नहीं। आज 21वीं सदी में बाजार हम पर नहीं, हम बाजार पर आश्रित होते जा रहे हैं। हमारी पसन्द न पसन्द सब बाजार तय कर रहा है। बाजार एक ‘आर्थिक विचार' बना हुआ है, जिसका उद्देश्य केवल मुनाफा कमाना है। उसे किसी के लाभ-हानि की कोई परवाह नहीं है। वर्तमान समाज वैश्वीकृत समाज का रूप ले चुका है! क्योंकि उसके बिना जीवन अब सम्भव नहीं रहा। आज का व्यक्ति अपने समाज एवं परिवार में अपने विचारों के साथ जितना स्वतन्त्र हुआ है, उससे कहीं अधिक गुलाम भी।

Last modified: 2021-06-20 03:01:38