पूर्वी मालवा की शैव मूर्तिकला
Journal: ANSH - JOURNAL OF HISTORY (Vol.3, No. 1)Publication Date: 2021-06-01
Authors : PATEL VINITKUMAR RAMNIKLAL;
Page : 65-69
Keywords : शैव; मालवा; संस्कृति; शिवलिंग; स्थापत्य;
Abstract
मालवा के ऐसे दो प्रमुख क्षेत्र रहे हैं। जहां पर कलरविद् एवं शिल्पकारों की छैनी-हथौडी प्राचीन काल से लेकर निरंतर चलती रही है, एक और मालवा का विदिशा- रायसेन क्षेत्र और दूसरी और पश्चिमी मालवा का मंदसौर नीमच क्षेत्र । वैसे तो समूह या मालवा अपने कला व संस्कृति की उत्सव भूमि के रूप में प्राचीन काल से लेकर आज तक संपन्न एवं प्रख्यात रहा है। भारत के कला जगत का ध्यान आकर्षित करते एवं बौद्ध -जैन , शैव साथ एवं वैष्णव कला एवं स्थापत्य को सांस्कृतिक आधारशिला को विश्वव्यापी संदर्भ में मुखरित करते तथा इस माध्यम से प्राचीन भारतीय राजनीति संस्कृति एवं सामाजिक जीवन को उद्दाभिमुख करते रहे हैं। ऐसे ही पूर्वी मालवा का शैव धर्म का प्रभाव पहले से ही इस क्षेत्र में रहा है। वह सब का ध्यान आकर्षित करता है। शैव की अनेक प्रतिमाएं यहां पाई गई हैं। लिंग प्रतिमाएं, साधारण शिवलिंग , एक मुखी शिवलिंग, चतुर्मुखी शिवलिंग मानवीय प्रतिमाएं ,उमामाहेश्वर, नृत्य प्रतिमाए , भैरव प्रतिमाएं बहुत प्रमाण में मिली है।इससे यह मालूम होता है, कि इस क्षेत्रोंमें शैव धर्म का प्रभाव बहुत है।
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Last modified: 2021-09-23 13:39:54
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