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वर्तमान समाज में गाँधी-दर्शन की प्रासंगिकता

Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.5, No. 4)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 95-99

Keywords : गाँधी-दर्शन; वर्तमान समाज; सत्य; अहिंसा; भगवद्गीता; संयम; सर्वोदय; समाजवाद; स्वदेशी।;

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Abstract

बदलते समय के साथ प्रत्येक वस्तु बदल जाती है, गीता का भी यही संदेश है कि परिवर्तन ही संसार का नियम है। किंतु गाँधीवादी दर्शन एक ऐसी विधा है, जो समय के साथ-साथ और अधिक स्थाई होती जा रही है। गाँधी जी ने अपने जीवन काल में अनेक ग्रंथों का अध्ययन किया जैसे- टॉलस्टॉय तथा रस्किन के ग्रंथ एवं विशेष रूप से गीता की महिमा से प्रभावित होकर उन्होंने समाज कल्याण के लिए ऐसे सिद्धांतों का प्रतिपादन किया, जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि समकालीन समाज में थे। उनके सिद्धांतों द्वारा 'वसुधैव कुटुम्बकम्'जैसी विचारधारा को पुनः बल मिला है। परिश्रम की समानता, प्रतियोगिता की समानता तथा विकेंद्रीकरण आदि उनके सिद्धांतों के मूल में है। परतंत्र भारत में विपरीत परिस्थितियों के बीच भी ऐसे सिद्धांतों को जन्म देना उनकी बुद्धि की त्रिकालदर्शी महान् सोच को परिलक्षित करता है। अतः आवश्यकता है कि वर्तमान में उनके विचारों का पुनः दोहन किया जाए।

Last modified: 2022-04-28 10:24:41