ResearchBib Share Your Research, Maximize Your Social Impacts
Sign for Notice Everyday Sign up >> Login

महादेवी वर्मा के काव्य में नारी मन की पीड़ा और अकेलापन

Journal: International Education and Research Journal (Vol.10, No. 9)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 187-190

Keywords : ;

Source : Downloadexternal Find it from : Google Scholarexternal

Abstract

महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य के छायावादी युग की एक ऐसी कवयित्री थीं, जिन्होंने कविता को केवल भावनात्मक सौंदर्य की अभिव्यक्ति तक सीमित न रखकर उसे स्त्री आत्मा की गूढ़ संवेदनाओं का माध्यम बना दिया। उनकी कविताएं केवल प्रेम की आकुलता या विरह की अनुभूति का चित्रण नहीं करतीं, बल्कि एक गहरे आत्मिक संघर्ष, मौन विद्रोह और स्त्री चेतना के उद्भव की सशक्त अभिव्यक्ति हैं। उनकी रचनाओं में स्त्री केवल एक प्रेमिका या सहनशील पात्र के रूप में नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र चेतना युक्त आत्मा के रूप में प्रकट होती है, जो सामाजिक व्यवस्थाओं से टकराने का साहस रखती है, भले ही वह टकराव मौन और प्रतीकात्मक हो। महादेवी वर्मा के काव्य में व्याप्त पीड़ा, अकेलापन, और विरह का भाव एक अंतर्जगत की यात्रा है, जिसमें वह स्वयं से संवाद करती है और अपने अस्तित्व की खोज में निरंतर प्रवाहमान रहती है। उनकी कविताओं में प्रयुक्त प्रतीक– जैसे पथिक, दीप, अंधकार, तारा, नयन– इस आत्मिक यात्रा के मार्गचिह्न हैं। यह पीड़ा केवल प्रेम में वियोग की नहीं है, बल्कि स्त्री अस्मिता की तलाश, सामाजिक यथार्थ से उत्पन्न संघर्ष, और एक समग्र मानवीय अस्तित्व की खोज की पीड़ा है।

Last modified: 2025-10-09 19:56:53