ज ैव विविधता और उसका संस्थितिक एवं असंस्थितिक स ंरक्षण
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.3, No. 9)Publication Date: 2015-09-29
Authors : आशा सक्सेना; स ुनीता चैहान;
Page : 1-2
Keywords : ज ैव विविधता और उसका संस्थितिक एवं असंस्थितिक स ंरक्षण;
Abstract
सामान्य शब्दों में जैव विविधता से तात्पर्य सजीवों (वनस्पति और प्राणी) म ें पाए जान े वाले जातीय भेद से ह ै। व्हेल मछली से लेकर सूक्ष्मदर्षी जीवाणु तक मन ुष्य से लेकर फफंूद तक ज ैव विविधता का विस्तार पाया जाता है। पर्या वरणीय ह्रास क े कारण जैव विविधता का क्षय हुआ है। मानव के अनियंत्रित क्रियाकलापा ें, बिजली, लालच और राजनीतिक कारणांे से जैव विविधता का विनाष बहुत त ेजी स े हो रहा ह ै। लगातार बढ ़ती जनसंख्याा, नगरीय क्ष ेत्रों की वृद्धि बाॅधों, भवनो ं तथा सड ़कांे का निर्मा ण, कृषि के लिए वना ें का कटाव, खदाना ें की खुदाई आदि ए ेसे कुछ उदाहरण है जिनसे प ्राक ृतिक संसाधनों में कमी आई है। जैव विविधता एक ए ेसा संसाधन है जिसे फिर से नहीं बनाया जा सकता ह ै। आज ए ेसा कोई कारगर तरीका नहीं है जिससे लुप्त हुए पौधों और जन्त ुआ ें को फिर से उत्पन्न किया जा सके। जैव विविधता का संरक्षरण मुख्यतः दो प्रकार से किया जा सकता हैः- 1 संस्थानिक संरक्षण ;प्छ ैप्ज्न् ब्व्छैम्त्ट।ज्प्व्छद्ध इसके अन्तर्ग त जाति का संरक्षण उनके मूल आवासा ें पर ही किया जाता है। 2 असंस्थानिक संरक्षण ;म्ग् ैप्ज्न् ब्व्छैम्त्ट।ज्प्व्छद्ध इस प्रकार क े संरक्षण के अन्तर्गत जाति का संरक्षण उनक मूल आवास से द ूर ले जाकर किया जाता है 3 दोनों प्रकार के संरक्षण एक द ूसर े के प ूरक ह ैं । इसके अतिरिक्त एक और संरक्षण विधि का भी प ्रयोग किया जाता है जिसे इन विट ªों ;प्छ टप्ज्त्व् ैज्व्त्।ळम् द्ध संग्रहण कहा जाता ह ै। इसमें पौधो ं का संग्रहण प ्रयोगषाला परिस्थितियों में किया जाता ह ै।
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Last modified: 2017-09-25 18:15:14