विकास के लिए पर्या वरण क े क्षेत्र म ें मनुष्य की नैतिक भूमिका
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.3, No. 9)Publication Date: 2015-09-29
Authors : आलोक गोयल; किरण बड े़रिया; राकेश कवच े;
Page : 1-3
Keywords : विकास के लिए पर्या वरण क े क्षेत्र म ें मनुष्य की नैतिक भूमिका;
Abstract
मानव जीवन का समूचा अस्तित्व पर्यावरण पर आधारित है। जहाँ पर्यावरण का सन्त ुलन विकास मार्ग का सन्त ुलन विकास मार्ग की प्रगति को प्रषस्त करता है। वहीें पर्यावरण का असन्त ुलन व्यक्ति ही नहीं समूच े समाज और मानव स ंसाधनों के विनाष का प्रमुख कारण ह ै। स ुन्दरलाल बहुगुणा का कहना है कि ‘‘पहले मन ुष्य प्रक ृति का ही एक अभिन्न हिस्सा था। प्रक ृति से उसका रिष्ता अहिंसक आ ैर आत्मीयता का था। स्वार्थ आ ैर भोग संस्क ृति के कारण अब यह न क ेवल बदल गया बल्कि विकृत हो गया।'' मन ुष्य क े अन ैतिक आचरण से जहां पर्यावरण सहित लगभग सभी क्षेत्रों मंे पतन हुआ ह ै वहीं अच्छ े आचरण और सामाजिक स्वीकृति से किया जान े वाले व्यावहारिक क्रिया-कलापा ें से आषातीत उत्थान की आषा भी बनी ह ै। मन ुश्य न े इस परिवर्त न से अपनी व्यक्तिगत छबि ही नहीं बर्नाइ है बल्कि समाज को प्रेरित कर प ूर े द ेष को उपर उठन े का अवसर भी दिया ह ै। इसके लिए मन ुष्य को निम्न न ैतिक दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए- पर्यावरण में कार्ब न उत्सर्ज न में व ृद्धि ह ुई ह ै तथा इसके फलस्वरूप वाय ुमण्डल में कार्बन डाइआॅक्साइड ग ैस की मात्रा बढ ़ी है। ग्रीन हाउस प ्रभाव का मुख्य कारण इसी ग ैस की वृद्धि है। इस े मन ुष्य रोकन े हेत ु वैकल्पिक ईंधन का उपयोग कर सकता है। मन ुष्य न े अपन े षौक तथा धन प्राप्ति के लालच से वन्य जीवों का षिकार इस सीमा तक किया ह ै कि अन ेक प्रजातियां ही ल ुप्तप्रायः हो चली हंै। इस क ुकृत्य पर मन ुष्य का े स्वप्रेरणा स े रोक लगानी हा ेगी। मन ुष्य अपन े द ैनिक जीवन में लकड ़ी के उपयोग को कम कर प्लास्टिक अथवा अन्य इसी प्रकार के पदार्थ को काम म ें लें। इससे वन क्षेत्रों की रक्षा होगी, जल चक्र, वायु चक्र, में गतिरोध नहीं होगा तथा प ्रकृति का सन्त ुलन बना रहेगा।
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Last modified: 2017-09-25 18:05:05