प्राक ृतिक संसाधनों का संरक्षण
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.3, No. 9)Publication Date: 2015-09-29
Authors : प्रगति वर्मा;
Page : 1-3
Keywords : प्राक ृतिक संसाधनों का संरक्षण;
Abstract
मानव जीवन का अस्तित्व, प्रगति विकास संसाधनों पर निभ्रर करता है । आदिकाल स े मन ुष्य प्रकृति स े विभिन्न प्रकार की वस्त ुएँ प्राप्त कर अपनी आवष्यकताओं को प ूरा करता ह ै वास्तव में संसाधन व े ह ै जिनकी उपया ेगिता मानव क े लिए हो, अन्य जीवों क े समान ही मानव भी पर्यावरण का ही एक अंग ह ै परन्त ु एक विभिन्नता जो सहज ही परिलक्षित होती ह ै वह यह है कि अन्य जीवों की त ुलना में मानव अपन े चारो ं ओर के पर्या वरण का े प्रभावित तथा कुछ अर्थो में उसे नियंत्रित कर पान े की पर्याप्त क्षमता ह ै यही कारण है कि मानव का पर्यावरण के साथ संब ंधों को इतना महत्व दिया जाता ह ै । आधुनिक जीवन में मानव तथा पर्या वरण के संबंधों की समस्या से अधिक उत्सुकता का अन्य कोई विषय नही ं है । इस जागरूकता की गति विकासषील द ेषा ें मे ं मंद रही ह ै तथा इसका समाधान संप ूर्णता से अभी-अभी ही अन ुभव किया जान े लगा है । विगत ् कुछ दषकों में पर्यावरणीय सजगता का वैष्विक आयाम प्रकट होन े लगा है । यह महसूस किया गया है कि पृथ्वी की प्रकृति व्यवस्था से भूमि, वाय ु, जल आदि का अप्रत्याषित न ुकसान किया जा रहा है पृथ्वी पर जीवों की भावी उत्तरजीविता को खतरा उत्पन्न होन े लगा है अब समग्र रूप से सोचन े की आवष्यकता पड ़ रही ह ै अब यह महसूस किया जान े लगा है कि विष्व का शग्य हमार े हाथो म ें ह ै । मन ुष्य को प्रक ृति के प्रति तिरस्कार का परिणाम भी सहना पड ़ा ह ै । इस सबके कारण ही आज इस बात की प ्रबल आवष्यकता अन ुभव की जान े लगी है कि किस प ्रकार प ्रकृति का उपर्य ुक्त संत ुलन प ुनः प ्राप्त किया जा सकता ह ै अब हमें अपन े तकनीकी का ैषल का उपयोग अपन े खोय े हुए पर्यावरण को पुनः प्राप्त करन े के तरीकों में करना होगा ।
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Last modified: 2017-09-25 19:06:01