डुग्गर भित्तिचित्रों का धार्मिक स्वरूप
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.5, No. 12)Publication Date: 2017-12-30
Authors : अपर्णा श्रीवास्तव ';
Page : 135-140
Keywords : डोगरा; भित्तिचित्र; धार्मि क; मन्दिर; कलात्मक अध्ययन;
Abstract
कला का प्रधान लक्ष्य सौन्दर्य की अन ुभूति है। कलाओं में सौन्दर्यानुभूति की सृजनात्मक अभिव्यक्ति की उत्पत्ति मानव सभ्यता के आदि काल से ही धार्मिक आध्यात्मिक कलाकृतियों की रचना क े कारण सम्भव हुई है। धर्म एवं कला दोनों ही मानवीय जीवन को व्यवस्थित एवं संगतिपूर्ण बनात े हैं तथा मानवीय जीवन के महान सत्य को प्रस्तुत करती है। कला तथा धर्म ने एक द ूसर े के निहितार्थ प्रेरणा का कार्य किया है। कला की धार्मिक अभिप्यक्ति क े सन्दर्भ में जम्मू की डुग्गर संस्कृति का विशेष महत्व है जहाँ कला ने धार्मिक अभिव्यक्ति क े प्रकटन हेतु विविध स्वरूपों का विकास किया, जिनमें से भित्ति चित्रण प्रमुख है। डुग्गर संस्कृति के भित्ति चित्रों में लोगों की धार्मिक भावना का साकार रूप दृष्टिगोचर होता है, जिसका उदेश्य धर्म का प्रचार एवं अतीत का सरंक्षण करना है। डोगरा कलाकारों न े वहाँ क े बाहय सौन्दर्य के वशीभूत होकर ही कला की उद्भावना नहीं की अपितु उसकी अन्तः प्र ेरणाओं और उसके भीतर प्रसुप्त दैवीय विश्वासों क े बल न े इनके विचारों व भावों को र ंग, रूप, वाणी और अभिव्यक्ति प्रदान की है। डोगरा राजाओं की धार्मिक प्रवृत्ति की अभिव्यक्ति का प्रस्त ुतीकरण हमें इन डोगरा राजाओं क े वास्त ु सम्बन्धी कृतियों यथा-गुफा, मन्दिरों एवं महलों में निर्मित भित्तिचित्रों में द ृष्टिगोचर होते हैं डोगरा कालीन इन भित्ति चित्रों म ें हिन्द ू धर्म की अवधारणा के अन्तर्गत विभिन्न निर्माण हुआ है।
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Last modified: 2018-01-22 18:16:11