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पातंजलि की योग शिक्षा का विवेकानन्द के राजयोग पर प्रभाव और उनके शैक्षिक विचारों के निहितार्थ

Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 5)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 78-84

Keywords : शिक्षा; योग शिक्षा; राजयोग; जीवन दर्शन; राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली;

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Abstract

योग शब्द ‘युज' धातु ‘धञ्' प्रत्यय के संयोग से बना है। व्याकरणकार पाणिनी के धातुराण पाठ में तीन ‘युज्' धातुओं का उल्लेख मिलता है और इनके अर्थों में भी भेद है – 1. युज् समाधौ - समाधि 2. युजिर योग - जोड़ना 3. युज संयमने - नियंत्रण करना योगदर्शन के सूत्रकार श्री पातंजलि ऋषि के जीवन का ठीक-ठाक पता नहीं चलता कहा जाता है कि योगशास्त्र के प्रेणता पातंजलि ऋषि न होकर हिरण्यगर्भ थे। ‘‘वह अग्नि है, वह सूर्य है, वह वायु है, वह चन्द्रमा है, वह शुक्र अर्थात् चमकता हुआ नक्षत्र है, वह ब्रह्म (हिरण्यगर्भ) है, वह जल (इन्द्र) है, वह प्रजापति (विराट) है।'' आज भारत में शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा की वर्तमान दूषित पद्धति, गुरु और शिष्य के संबंधों के बीच गिरती हुई दीवार, समाज में सामाजिक व आर्थिक असमानता, असामाजिक क्रियाओं का बोलबाला, व्यक्ति के व्यक्तित्व का नैतिक एवं चारित्रिक पतन आदि पर दृष्टि पड़ती है तो ऐसी स्थिति से निजात पाने हेतु पांतजलि एवं विवेकानन्द के दार्शनिक एवं शैक्षिक विचार ही हमें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

Last modified: 2021-06-20 02:50:12