शिक्षा का अधिकार अधिनियम और प्रारम्भिक शिक्षा के निजीकरण में वंचितों की व्यावहारिक कठिनाइयाँ
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 4)Publication Date: 2021-04-30
Authors : सुधांशु कुमार सिंह;
Page : 37-41
Keywords : शिक्षा का अधिकार; निजीकरण; पच्चीस फीसदी कोटा।;
Abstract
भारत के संविधान भाग-4, अनुच्छेद 45 में यह प्रावधान किया गया था कि राज्य 14 वर्ष की आयु समूह तक के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास करेगा (काश्यप : 1996 : 127)। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत सरकार द्वारा ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009' लाया गया जिसे 1 अप्रैल 2010 को लागू कर दिया गया। यह अधिनियम जम्मू कश्मीर राज्य को छोड़कर भारत के सभी राज्यों में प्रभावी है (कुमार : 2013 : 121)। हालांकि प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण का लक्ष्य अभी भी हमारी पहुँच से बहुत दूर है। कई शोधरिपोर्ट और उपलब्ध आँकड़े शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ते निजीकरण को रेखांकित करते हैं। शिक्षा अधिकार अधिनियम अध्यााय (4) की धारा 12(1)(ग) की धारा (2) के खण्ड (ढ) के उपखण्ड (iv) में निजी गैर-अनुदानित मान्यता प्राप्त स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर एवं वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों के लिए पहली कक्षा (नर्सरी, के.जी.) में कुल सीटों में से 25 फीसदी कोटे के प्रावधान को सुनिश्चित किया गया (आर.टी.ई. एक्ट : 2009)। ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्रावधान निजीकरण की पैरवी करता है। निजी क्षेत्र पूरी तरह से मानव-केन्द्रित न होकर लाभार्जन पर आधारित होता है। निजीकरण शैक्षिक अवसरों की प्राप्ति में अवरोध उत्प न्नत करता है।
Other Latest Articles
- वैश्वीकरण के दौर में बाजार और समाज का अंतर्संबंध
- Liberating Hamlet: Vishal Bhardwaj’s Un-Shakespearean Treatment in Haider
- Shakespeare as a playwright of Inordinate Heroines - A critical study
- Treatment of Diaspora in Amitav Ghosh’s “The Glass Palace” and “The Circle of Reason”: A postcolonial Reading
- पातंजलि की योग शिक्षा का विवेकानन्द के राजयोग पर प्रभाव और उनके शैक्षिक विचारों के निहितार्थ
Last modified: 2021-06-20 03:05:09