स्त्री एकता का स्कूल : रजनी तिलक
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 3)Publication Date: 2021-03-18
Authors : राजेश कुमार;
Page : 22-26
Keywords : दलित स्त्री; पितृसत्ता; अम्बेडकरवाद; एक्टिविज्म; महिला लेखन; जातिभेद; लैंगिक भेद।;
Abstract
पितृसत्ता के समक्ष सभी स्त्रियाँ दलित हैं लेकिन एक सवर्ण स्त्री जो पितृसत्ता द्वारा शोषित है, वह भी जातिगत विशेषाधिकार प्राप्त करके दलित स्त्रियों के प्रति भेदभावपूर्ण और दमनकारी भूमिका निभाती हैं। अभिजात्यवादी स्त्री विमर्श में दलित -आदिवासी स्त्रियाँ भीड़ की तरह शामिल की जाती हैं , नेतृत्व में उन्हें स्थान नहीं दिया जाता। दुनिया भर के समाजों में स्त्री एकरैखिक सामाजिक-लैंगिक श्रेणी नहीं है। स्त्रियों में सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक स्तरीकरण है। जैसे उत्तर भारत और पूर्वोत्तर भारत की स्त्रियों की स्थिति एक जैसी नहीं है। ऐसे ही कश्मीर की स्त्री और देश के बाकी हिस्सों की स्त्रियों की हालत एक जैसी नहीं है। भारत में जाति की विशिष्टता के कारण यहाँ भी अछूत और दलित-आदिवासी स्त्रियों की सामाजिक-आर्थिक-लैंगिक हैसियत भी सवर्ण स्त्री जैसी नहीं है। रजनी तिलक एक स्त्रीवादी एक्टिविस्ट और लेखिका थीं। उनकी कहानी और कविताएँ स्त्री मुक्ति के स्वप्न और संघर्ष का दस्तावेज हैं। उनका स्त्री विमर्श किताबी नहीं है बल्कि जीवन संघर्षों और अनुभवों की निर्मिति है। उन्होंने अपने अनुभवों से जाना कि स्त्री मुक्ति की राह में जाति एक बड़ी बाधा है। स्त्री विमर्श एवं आन्दोलन की सफलता के लिए सभी स्त्रियों के बीच एकता होना जरूरी है। स्वम् को डिकास्ट और डिक्लास करके स्त्री विमर्श और आन्दोलन को व्यापक बनाने की जरूरत है। रजनी तिलक का एक्टिविज्म , लेखन और जीवन स्त्री की पाठशाला बना।
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Last modified: 2021-06-21 01:41:36