लोक-जीवन की जमीन और रेणु का हिन्दुस्तान
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 3)Publication Date: 2021-03-18
Authors : रामाश्रय सिंह;
Page : 98-103
Keywords : आपदायें; डेमोक्रेसी; खाद्यान्न; कफ्र्यू; बाढ़; फ्लड आदि।;
Abstract
देश आजाद हुआ। शहरी और ग्रामीण जीवन में काफी परिवर्तन हुआ। गाँव के बेरोजगार युवक शहर की ओर पलायन करने लगे। अंग्रेजों के समय जो स्थिति थी, वह आज भी है। प्राकृतिक आपदाएँ, दुर्घटनाएँ, सीमा विवाद, भ्रष्टाचार आज भी है। इसका निराकरण नहीं मिल रहा है। जैसे- डेमोक्रेसी चाइना, चुनाव, रेल दुर्घटना, खाद्यान्न, भ्रष्टाचार, जनता, सत्यमेव जयते, कफ्र्यू, फायरिंग, बाढ़ फ्लड, दहाड़, सुखा के शब्द रेणु को झकझोर देते हैं। तब वे स्वयं को धिक्कारते हैं। वे समय के साथ ग्रामीण जीवन में बदलाव चाहते थे। युवाओं को गाँवों से बाहर निकाल कर उसमें नई चेतना लाना चाहते थे। ये नवजवान गाँव की सामाजिक रूढ़ियों, अंधविश्वासों, एवं जड़ताओं को तोड़ने की भूमिका निभाएँ। उनमें वैज्ञानिक चेतना जगाना भी था। यही कारण है कि परिवेश में रचे बचे-शब्द- रूप, गंध, और स्पर्श की पहचान करते हैं। यह रेणु की मौलिकता है। हिन्दुस्तान में पर्व-त्योहार, लोकगीत, लोकनृत्य, ढोलक की आवाज, चिड़ियों की आवाज आदि के टोन इनकी कहानियों में विरासत के रूप में सुरक्षित है। ये चिरकाल तक कथा के साथ-साथ मानव जीवन में यात्रा करेंगे। रेणु के साहित्य में गाँव जीवित है। धड़कते हुए और प्रतिक्रिया करते हुए क्योंकि उनका हिन्दुस्तान गाँवों का देश है। सारतः रेणु का हिन्दुस्तान समकालीन भारत को दिखाने का है।
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Last modified: 2021-06-21 02:23:51