विस्थापन और उसका परिणाम
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 1)Publication Date: 2021-01-15
Authors : औरजीना मैरी लाकाडोंग;
Page : 27-31
Keywords : आदिवासी; दलित; मानवीय अधिकार; गरीब किसान; जल-जंगल-जमीन; मौलिक अधिकार।;
Abstract
आज दुनिया में हर देश आर्थिक निर्भर बनने की दौड़ में शामिल है। हमारा देश भारत भी उस दौड़ में शामिल है। आर्थिक निर्भर बनने के लिए देश का विकास भी जरूरी है इस बात में कोई दो राय नहीं। सरकार द्वारा बनाई गई तमाम आर्थिक नीतियां देश को प्रगति के पथ पर ले तो आया है लेकिन किन शर्तों पर ? इस शोध पत्र का उद्देश्य यह रेखांकित करना है कि इस आर्थिक विकास के नाम पर देश की सरकार जब बड़ी-बड़ी परियोजनाएं, रेलवे मार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण करती हैं तो वहां पर पहले से बसने वाले लोगों के जीवन को कहां तक प्रभावित करती है ? मानवीय अधिकारों की अनदेखी करके जब सरकार इन लोगों को विस्थापित करती है और मुआवजे की राशि का वादा करती है तो वह कितनी सफल हो पाती है या असफलता इन विस्थापित लोगों के जीवन को जड़ से उखाड़ के रख देती है। इस शोध पत्र में विस्थापित लोगों के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नों को उठाया गया है।
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Last modified: 2021-06-22 00:30:49