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कबीर की दृष्टि में सामाजिक सद्भाव

Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 1)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 86-92

Keywords : सद्भाव; लुकाठी; प्रेम; अजूबा; योगी; नवखंड आदि।;

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Abstract

कबीर की दृष्टि में सामाजिक सद्भाव को समझने से पूर्व यह जानना अतिआवश्यक है कि उस समय का समाज कैसा था और यहाँ सामाजिक सद्भाव का प्रयोग किस रूप में हुआ है । संत काव्य एवं ज्ञानाश्रयी शाखा के मुख्य स्तम्भ ‘कबीर' है। कबीर अपने समय के इन धार्मिक प्रपंचों, जातिवाद के बंधनों व धर्म के ठेकेदारों द्वारा किए जाने वाले शोषण को देख चुके थे; तब उन्होंने ठाना कि मैं इन प्रपंचों को जान कर ही रहूँगा कि आखिर इन दकियानूसी विचारों का आधार क्या है ? बस क्या था, कबीर घूम-घूम कर सत्संग में जाने लगे और इनके पूरे प्रपंचों को जान गए। यही कारण है कि कबीर निर्भीक होकर ज्ञान की लुकाठी लिए सरे बाजार सबकी पोल खोलने लगे। वास्तव में इनके हर विरोध के पीछे एक तर्क होता था, जिसका जवाब देना धर्म के ठेकेदारों के लिए कठिन था। इस कारण धर्म के ठेकेदार उनसे सहमे-सहमे से रहने लगे, अपने इसी अदम्य साहस के कारण कबीर जन-जन के ह्रदय पर छा गए। कबीर समाज में सद्भाव लाना चाहते थे, जिसके लिए प्रेम की आवश्यकता थी, इसलिए कबीर रूढ़ियों के स्थान पर प्रेम पर बल दिया। “कबीर को पढ़ने के लिए उन्हें अजूबा बनाने के प्रलोभनों से मुक्त होना पहले जरूरी है।”1 कारण यह है कि कबीर के समाज के प्रति सभी विचार उनकी खुद की वास्तविक अनुभूति है, जो आज भी जन-जन व्याप्त है। कबीर समाज में आडंबर और रूढ़ियों खत्म कर समानता एवं सद्भाव के द्वारा मानवीयता को स्थापित करना चाहते थे।

Last modified: 2021-06-22 00:48:51