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आत्मजयी में अभिव्यक्त: जीवन की अमर अर्थवत्ता

Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.3, No. 12)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 52-56

Keywords : अमरता; जिजीविषा; औपनिषदिक वृतांत; सविनय अवज्ञा; सर्जनात्मक भाषा;

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Abstract

यह शोध आलेख कुंवर नारायण विरचित आत्मजयी खण्ड काव्य पर प्रस्तावित है। आत्मजयी काव्य कठोपनिषद के नचिकेता प्रसंग पर आधारित है। इसमें कवि ने औपनिषदिक वृतांत में उतर कर पाप और पुण्य की सार्थकता को पूरी जटिलताओं के साथ तलाशने की कोशिश की है। गौरतलब है कि उक्त काव्य में जहां वाजश्रवा वैदिक कालीन वस्तुवादी दृष्टिकोण का प्रतीक है तो नचिकेता उपनिषत्कालीन आत्म-पक्ष का। जाहिर तौर पर कवि ने इस काव्य के माध्यम से आधुनिक भाव बोध को सर्जनात्मक भाषा में विश्लेषित करने का प्रयास किया है। कुंवर नारायण ने अपनी डायरी “दिशाओं का खुला आकाश” में रेखांकित किया है कि ‘आत्मजयी में मृत्यु के भय से उबर सकने और रचनात्मक जीवन की शक्ति को पहचान सकने की चिंता प्रमुख रही है'। बहरहाल, आत्मजयी काव्य जीवन की सृजनात्मक संभावनाओं से साक्षात्कार करने के साथ ही अमरता के मूल्यों की प्रस्तावना भी करता है। अतः इसमें निहित अमर अर्थवत्ता को परखना कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण निष्कर्षों की प्रतीति कराता है। मसलन, नचिकेता की चिंता अमर जीवन की चिंता है एवं आत्मजयी नचिकेता की सविनय अवज्ञा का ही वृतांत मालूम पड़ता है।

Last modified: 2021-06-23 17:15:18