भाषाई वर्चस्व का भूगोल और हाशिये की अस्मिता
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.3, No. 11)Publication Date: 2020-11-24
Authors : रजनी बाला अनुरागी;
Page : 49-55
Keywords : मातृभाषा; भाषाई उपनिवेशिकरण; निम्नवर्गीय शिक्षा; साहित्य; अस्मिता और मुक्ति के प्रश्न;
Abstract
सभ्यता के विकास में भाषा एक महत्वपूर्ण आधार रही है। एक ऐतिहासिक प्रक्रिया के दौरान भाषा भी लगातार विकसित होती रही है। मनुष्य की विचारशीलता का लगातार तर्कशील, वैज्ञानिक और आधुनिक होना भी भाषा के विकास पर ही निर्भर रहा है। इस प्रकार भाषा का विकास न सिर्फ मनुष्य के बल्कि समाज और समाज के सामाजीकरण की प्रक्रिया के विकास में एक महत्वपूर्ण औजार रहा है । लेकिन भाषा, संस्कृति और समाज के विकास की इस प्रक्रिया में भाषा खुद एक सत्ता के रूप में विकसित होती गई और ऐतिहासिक प्रक्रिया में वह वर्चस्वशाली वर्गों की भाषा यानी सत्ता की भाषा के रूप में रूपांतरित हो गयी। खास तौर, पर उपनिवेशवादी दौर में भाषा अपने सर्वोत्तम कटु रुप में उत्पीड़क और उत्पीड़ित की भाषा के रूप में बहुत स्पष्ट तौर पर प्रकट हुई जिसकी वजह से मनुष्य, संस्कृति, भाषा और समाज के विकास की गति में भी व्यवधान पड़ गया। भारतीय संदर्भ में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरुद्ध मुक्ति संघर्ष में सफलता के बावजूद भाषाई उपनिवेशवाद समाप्त नहीं हुआ बल्कि यह समाज, संस्कृति, साहित्य और शिक्षा के धरातल पर और गहरा होता गया है। मातृभाषा में शिक्षण, दलित-आदिवासी और अन्य निम्नवर्गीय समुदायों के साहित्य और अस्मिता के आंदोलन इसी भाषाई उपनिवेशवादी सत्ता के ख़िलाफ़ मुक्ति के आंदोलन के रूप में सामने आये हैं।
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Last modified: 2021-06-24 00:51:09