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हिन्दी कविता की तीसरी धारा

Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 8)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 29-37

Keywords : किसान विद्रोह; राजनीतिक जनचेतना; स्वातंत्र्योत्तर काव्य चेतना; कविता की तीसरी धारा;

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Abstract

आजाद भारत के पूर्व ‘तेभागा और बाद में ‘तेलगाना' के बाद नक्सलबाड़ी विद्रोह बड़ा और व्यापक किसान विद्रोह है। इसने भारतीय समाज के राजनीतिक परिदृश्य पर क्रांतिकारी वाम चेतना को संभव बनाया। इस आंदोलन की व्यापकता के फलस्वरूप हिन्दी कविता में क्रांतिकारी वाम चेतना से लैस कविता के तीसरे संसार की उत्पत्ति हुई जिसने पिछले शीतयुद्धीय और पूंजीवादी राजनीति से प्रभावित, दिग्भ्रमित और दिशाहीन साहित्यांदोलनों के जाल को काटा और प्रगतिशीलता और जनवादी कार्य का न केवल विस्तार किया बल्कि जन कला और जन साहित्य के नये प्रतिमान रच कर उसे नये मायने भी दिये। हिन्दी कविता की तीसरी धारा के कवियों की चिंता एक-सी है। इनका काव्य सरोकार भी एक-सा है परन्तु काव्य-वस्तु और काव्य-रूप की दृष्टि से इनमें काफी विविधता है। अपने समय और समाज से रिश्ता भी ये अलग-अलग ढंग से कायम करते हैं। इनकी कविताएं एक ही विचारधारा, एक ही लक्ष्य और एक ही स्वभाव की दृष्टि से भिन्न हैं। इन कवियों की ये वैविध्य विशेषताएं नयी कविता, अकविता और समकालीन कविता की एक दूसरे की कार्बन कॉपी लाने वाली एकरूपता को मुंह चिढ़ाती है।

Last modified: 2021-09-14 11:30:17