ब्रिटेन में भारतीय दलित प्रवासियों में अस्मिता उभार और चेतना
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 8)Publication Date: 2021-08-17
Authors : अश्वनी कुमार शर्मा; प्रदीप कुमार;
Page : 73-78
Keywords : अम्बेडकराईट; रैदासी समुदाय; हिंदू - दलित प्रवासी चेतना; नव दलित प्रवासी; दलित मानवाधिकार आंदोलन;
Abstract
भारतीय प्रवासियों ने ब्रिटेन के नवउदारवादी समाजों में अपनी ख़ास पहचान स्थापित की है । ब्रिटिश समाजों के विभिन्न वर्गों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है, इतना ही नहीं यहाँ की राजनीति-संस्कृति में भी अपनी पैठ बनाई है, जो निश्चित ही भारतीय प्रवासियों की उपलब्धियाँ हैं । भारत के लिए भी यह गौरव की बात है, लेकिन ऊपर से इतनी सुन्दर दिखने वाली तस्वीर की बारीकियों में कुछ चिंता की बात भी हैं, मसलन भारतीय मूल के ये समुदाय अपने वर्तमान समाजों में किसी एक जैसी सामाजिक संस्कृति का नेतृत्व नहीं करते, बल्कि अपने वतन की यादों में डूबे ये समुदाय जाति समुदाय बन गए हैं और धार्मिक एवं जातीय समुदायों में बंट गए हैं जिसका प्रभाव ये पड़ा है कि ब्रिटिश समाजों में भी भारतीय समाजों की तरह जाति का विष फैल गया है । यहां जातीय अस्पृश्यता भले ही ये भारतीय तौर तरीक़ों से कुछ मायनों में भिन्न दिखने वाली हो लेकिन सच्चाई यह है कि अब ब्रिटेन मे भी यहाँ की तरह जातीय संगठन, व्यवहार, जातीय समुदायों की राजनीति, जातीय प्रेशर ग्रुप और जातीयता को चमकाने के तमाम प्रतीक और औजारों के बल पर जातीय एसरशन करने लगे हैं । अन्य शब्दों में कहें तो ब्रिटिश समाजों में अब जाति प्रवेश कर गई है जो ब्रिटिश संसद तक को जातीय असमानता पर कानून बनाने के लिए दबाव बढ़ा रही है । कहना न होगा कि अब इन समुदाय के अलग अलग हित इनकी ख़ास पहचान बना रहे हैं जिससे प्रवासी समझ को अध्ययन करने वाले विद्वानों को भी ये चेता रहे हैं कि बदलते परिवेश में इन समुदायों का अलग अलग अध्ययन किए जाने की आवश्यकता उभर रही है और सामुदायिक प्रवासी सिद्धांत के तौर पर मान्यता के प्रश्न कर रहे हैं।
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Last modified: 2021-09-14 11:40:51