हिन्दी दलित स्त्री कविता : नई चेतना, नए स्वर
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 8)Publication Date: 2021-08-17
Authors : रजनी बाला अनुरागी;
Page : 38-44
Keywords : दलित विमर्श; स्त्री कविता; दलित कविता; दलित स्त्री कविता; पितृसत्ता; सरोकार; संघर्ष;
Abstract
हिन्दी में दलित स्त्री कविता का आगमन एक ऐसे बिन्दु पर होता है जहां तक आते आते स्त्री कविता और दलित कविता स्थापित हो चुकी थे और अपनी पहचान बना चुके थे। दलित कविता के इसी बिन्दु से हिन्दी कविता में दलित स्त्री कविता की शुरुआत होती है। दलित स्त्री कविता संवेदना, अन्तर्वस्तु, शिल्प और विचार के स्तर पर नए आयामों को सामने लाती है। दलित स्त्री कविता न सिर्फ़ हिन्दी की स्त्री कविता के अन्तरविरोधों को उजागर करती है बल्कि दलित कविता में स्त्री पक्ष की पितृसत्तावादी समझ के संकीर्णता के पेचों को भी खोलती है। दलित स्त्री कविता समकालीन स्त्री कविता और दलित कविता के सीमित दायरे को तोड़ कर न सिर्फ़ कविता के फलक को व्यापकता की ओर ले जाती है बल्कि उन पहलुओं को भी पूरी कलात्मकता और गहराई से सामने लाती है जो यहां छूटते रहे हैं। दलित स्त्री कविता उन सभी सवालों को उठाती है जिनकी अब तक अनदेखी हुई या जिनको बहुत सीमित समझ के साथ देखा गया। इन सभी सवालों को इस शोधालेख में उठाया गया है और उनको समझने की कोशिश की गई है। साथ ही इन अनुत्तरित सवालों के जवाब दलित स्त्री कविता के हवाले से खोजने की कोशिश भी इस शोधालेख में की गई है।
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Last modified: 2021-09-14 11:32:08