ब्रह्मविहार में आगत उपेक्खा भावना : एक अनुशीलन
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 9)Publication Date: 2021-09-17
Authors : कमलेश अहिरवार;
Page : 36-40
Keywords : मैत्री-भावना; कारुणा-भावना; मुदिता- भावना; शील; समाधि; प्रज्ञा; ध्यान; शामथ ध्यान; विपश्यना; सदाचार;
Abstract
बौद्ध धर्म-दर्शन में शील आदिकल्याणकारी है, समाधि मध्यकल्याणकारी है, और प्रज्ञा पर्यवसानकल्याणकारी है। बुद्धोपदिष्ट सद्धम्म एक सुखी जीवन का मार्ग है, जो व्यक्ति को पवित्र, निष्पाप व सार्थक जीवन जीने की कला सिखाता है। भगवान् बुद्ध ने व्यक्ति को अपने जीवन में शील व भावना का पालन करते हुए श्रद्धापूर्वक दान करने का उपदेश दिया है। चित्त की निर्मलता के साथ निर्वाण रूपी परम उपदेश की पूर्ति हेतु ही जाने वाली कुशल चित्त की एकाग्रता ही समाधि है। चित्त एकाग्र करके चित्त के क्लेशों का उपशम करने के लिए, भगवान् बुद्ध ने चालीस कर्मस्थानों का उपदेश दिया है। इन कर्मस्थानों में से ब्रह्मविहार भावना को उत्तम एवं सर्वोत्कृष्ट कर्मस्थान माना जाता है। ये चित्त की दिव्य व सर्वोत्कृष्ट अवस्थाएँ है, जो चित्त विशुद्धि के उत्तम साधन है। ये परहित के साधन है, जिसमें आत्महित की भावना सम्मलित है जबकि अन्य कर्मस्थान केवल आत्महित के साधन हैं।
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Last modified: 2021-09-29 11:52:06