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समकालीन स्त्रियों की सामाजिक जागरूकता

Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.5, No. 1)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 5-9

Keywords : समकालीन; स्त्री-अस्मिता; उपभोक्तावाद; अपसंस्कृति; साम्राज्यवादी व्यवस्था;

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Abstract

हिंदी समाज और साहित्य में स्त्री को न केवल पारंपरिक रिश्तों और आदर्शों के खांचों में ढालकर जीना पड़ता है बल्कि आधुनिक युग में निरंतर गठित और पुनर्गठित पितृसत्ता उस पर नई से नई जिम्मेदारियों को लादती चलती हैं। राष्ट्रवादी उत्थान के दौर में वह औपनिवेशिक दख़लंदाज़ी से मुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक अस्मिता, उसकी अध्यात्मिकता श्रेष्ठता और भीतरी पवित्रता की वाहिका और प्रतीक बना दी गई। परंतु इन सब सामाजिक यांत्रिकताओ के विपरीत समकालीन स्त्रियां अपने कर्म के प्रति रचनारत हैं। वह जनसाधरण से सकारात्मक ऊर्जा पाते हुए निरंतर आगे बढ़ रही है। आज के यांत्रिकम समय की चुनौतियां कविता को हाशिए की चीज़ बनाने में अमादा है फिर भी समकालीन कवयित्रियां इन्हीं चुनौतियों का सामना कर रही हैं। स्त्री कविता सिर्फ स्त्री समस्या पर केंद्रित नहीं है बल्कि अपने समाज की सारी चुनौतियों को वह सामाजिक सरोकार के साथ अभिव्यक्त कर रही हैं।

Last modified: 2022-02-05 10:57:41