पाली साहित्य में वर्णित प्रकृति एवं पर्यावरण
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.5, No. 4)Publication Date: 2022-04-23
Authors : सोनू;
Page : 20-23
Keywords : बोधिवृक्ष; निर्वाण; परिनिर्वाण; स्तूप; विहार; स्तंभ;
Abstract
बौद्ध धर्म दो सहस्राब्दियों से अधिक समय से कई अलग-अलग वातावरणों में अंतर्निहित परंपराओं का एक विशाल और विषम समूह है। फिर भी, बौद्ध संस्कृतियों में कुछ ऐसी ही प्रथाएँ रही हैं जिन्होंने स्थानीय पर्यावरण के निर्माण में योगदान दिया। बौद्ध साहित्यों और परंपराओं के कई उदाहरण प्रस्तुत है । जिसमें प्रकृति एवं पर्यावरण से संबंधित विवरण उल्लेखनीय है बौद्ध धर्म मे आरंभ से ही प्रकृति और जीव जंतुओं का विशेष स्थान रहा है। चाहे वह वृक्षों की महत्ता को दर्शाते हो या फिर प्राकृतिक पशुओं को दर्शाते हो। जिसमें बोधिवृक्ष, अश्व, हाथी, कमल आदि अधिक महत्व रखते है। बौद्ध धर्म और पर्यावरण का संबंध प्राचीन है। बौद्ध धर्म में प्रकृति को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। बुद्ध और प्रकृति का एक अहम संबंध माना जा सकता है। क्योंकि बुद्ध के जन्म से लेकर उनके परिनिर्वाण तक प्रकृति का लगाव देखा जा सकता है। जैसे बोधिवृक्ष, बुद्ध के निर्वाण प्राप्ति की द्योतक है और साल वृक्ष बुद्ध के परिनिर्वाण का द्योतक है।
यह शोध पत्र बौद्ध धर्म में पर्यावरण के महत्व को दर्शाता है। जिसमें समय समय पर पर्यावरण को सुरक्षित रखने का उपदेश प्राप्त होता है। क्योंकि बौद्ध धर्म के विस्तार के साथ साथ उन स्थानों पर बौद्ध तीर्थस्थलों का निर्माण भी किया गया। वहां के भूदृश्यों को बौद्ध स्थलों में बदल दिया गया। कुछ विशेष स्थानों पर स्तूपों, स्तंभों, विहारों, बौद्ध मंदिरों , गुफाओं आदि का निर्माण किया गया जिससे उस स्थानीय परिवेश की वास्तविकता को संरक्षित रखा जा सके। इन सभी निर्माणों से उस भू दृश्य को कोई क्षति न पहुँच सके और साथ ही पर्यावरण संरक्षण का उपदेश अन्य सामान्य जन तक पहुँच सके।
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Last modified: 2022-04-28 10:02:56