नील विद्रोह - एक ऐतिहासिक विश्लेषण (1859-60)
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.5, No. 4)Publication Date: 2022-04-23
Authors : रितु रानी;
Page : 114-117
Keywords : नील बागान; उपनिवेशीकरण; किसान विद्रोह; निलहों;
Abstract
क्रांति का रंग लाल हो, ऐसा होना जरूरी नहीं हैं क्रांति का रंग नीला भी हो सकता है बंगाल में ऐसा तब हुआ जब 1859 के नील विद्रोह के द्वारा रैयतों ने (नील की खेती करने वाले किसान) अंग्रेजी हुकुमत की नींव हिला दी। 1857 के विद्रोह के पश्चात् होने वाला यह प्रथम विद्रोह था तथा 1857 की विफलताओं के पश्चात भी बंगाल के किसानों ने एकजुट होकर अंग्रेजों द्वारा किये जा रहे शोषण का पुरजोर विरोध किया तथा इसमें उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई। 19 शताब्दी के उत्तरार्द्ध में होने वाला यह प्रमुख किसान विद्रोह था, जिसमें नील मी खेती करने वालों किसानों ने यूरोपीय प्लान्टर (भूमि और नील कारखानों के मालिक) के शोषण से परेशान होकर नील की खेती करना बंद कर दिया, जिसके कारण उन्हें भयंकर दमनचक्र का सामना करना पड़ा। शोषण से पीड़ित किसानों ने पूर्ण एकजुटता का परिचय दिया तथा इसके परिणामस्वरूप 1860 तक पूरे बंगाल में नील की खेती और उत्पादन बंद हो गया। अततः 1860 में ब्रिटिश सरकार ने नील आयोग का गठन किया।
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Last modified: 2022-05-03 17:26:14