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सामाजिक मुद ्दे एव ं पर्यावरण

Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.3, No. 9)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 1-3

Keywords : सामाजिक मुद ्दे एव ं पर्यावरण;

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Abstract

मन ुष्य अपन े पर्यावरण क े साथ ही जन्म लेता ह ै। और उसके बीच ही अपना जीवन यापन करता ह ै। द ूसर े शब्दों में सारा समाज पर्यावरण के बीच अर्था त प्रकृति की गोद में अपना जीवन यापन करता ह ै। किन्त ु इस जीवनयापन के लिए मन ुष्य मुख्य रूप से पर्यावरण पर निर्भर करता है। अपन े जीवन को स ुचारू रूप से चलाए रखन े एव ं उसे और अधिक ब ेहतर बनान े के लिए मन ुष्य निर ंतर प्रयास करता है तथा इसके लिए वह प्राक ृतिक संसाधनों का दोहन करता है। इस प्रकार मन ुष्य आदिम युग स े आज तक निरंतर प्रकृतिक संसाधनों से अपना जीवन चलाता आया है। जिससे प्रकृति का े कुछ नुकसान भी पहुंचा है। क्योंकि मन ुष्य न े आधुनिकता की अंधीदौड में ए ेसे रसायना ें का प्रयोग किया है। जो प्रकृति के लिए अत्यंत न ुकसानद ेह है। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या मन ुष्य अपना विकास ब ंद करद े। नहीं वह अपना विकास बिना प्रकृति या पर्यावरण को न ुकसान पह ुंचाए भी जारी रख सकता ह ै। बस आवश्यकता ह ै तो इस बात की कि वह जो भी कर े उससे पर्यावरण को न ुकसान न पहुंचे क्योंकि यदि वह न ुकसान पर्यावरण को पहुंचा रहा ह ै। ता े परोक्ष रूप से मन ुष्य अपना न ुकसान स्वयं कर रहा है। वैश्विक तापवृद्धि एव ं ओजा ेनक्षरण ग ्रीनहाउस प्रभाव बढ ़ना इत्यादि ए ेसे उदाहरण हैं जो मानव द्वारा पर्यावरण को पहुंचाए जा रहे न ुकसानों को प्रत्यक्ष रूप से बयान करत े हैं।

Last modified: 2017-09-25 18:13:30