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जलवायु परिवर्तन आ ैर भारतीय क ृषि

Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.3, No. 9)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 1-3

Keywords : जलवायु परिवर्तन आ ैर भारतीय क ृषि;

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Abstract

भारतीय अर्थ व्यवस्था की आधारशिला कृषि है। कृषि एव ं जलवाय ु परिवर्त न का सबसे ज्यादा प्रतिकूल प ्रभाव कमजा ेर कृषक पर पड ़ रहा है। वर्षा की मात्रा में परिवर्त न होन े से फसलो ं की उत्पादकता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड ़ा है। जलवायु म ें होन े वाला परिवर्त न हमारी राष्ट ªीय आय का े भी प्रभावित कर रहा ह ै। द ेश के बहुत से भागो ं में अल्प वर्षा से फसलें सूख जाती है या अति-वृष्टि से बह जाती है जिसस े न केवल खाद्यानों का उत्पादन कम हुआ बल्कि उनकी कीमत े भी त ेजी से बढ ़ गई। जलवायु परिवर्त न से फसला ें की उत्पादकता ही प्रभावित नहीं ह ुई बल्कि उसकी ग ुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड ़ा है। तापमान के बढ ़न े से मिट ्टी की नमी व उत्पादकता प्रभावित हुई है। जलवाय ु परिवर्त न से जल आप ूर्ति की ग ंभीर समस्या उत्पन्न हुई तथा सूखे व बाढ ़ की बारम्बरता में व ृद्धि हुई। वैश्विक तापमान में वृद्धि से सम ुद ्र का जल स्तर बढ ़ेगा जिससे तटीय क्षेत्रों मंे रहन े वाले लोगों की आजीविका प्रभावित होगी। जल स्तर बढ़न े से समुद ्र खेता ें को निगल जाएगा भूमि क्षारीय हो जाएगी व खेती योग्य नहीं रहेगी। जलवायु परिवर्त न के गंभीर व द ूरगामी प्रभावों को ध्यान में रखत े हुए बीजो ं की ए ेसी किस्मों का विकास करना पड ़ेगा जो नये मा ैसम के अन ुक ूल हो। ए ेसी किस्मा ें का े विकसित करना होगा जो अधिक तापमान तथा सूख े व बाढ ़ की विभिषिका को सहन करन े में सक्षम हो तथा लवणता व क्षारीयता को भी सहन कर सके। जलवाय ु परिवर्तन के साथ-साथ हमें फसलों के प्रारूप व उनके बोन े के समय मं े भी परिवर्त न करना होगा।

Last modified: 2017-09-27 19:04:08