बेगम रुकैया सखावत हुसैन: जीवन, संघर्ष एवं सामाजिक योगदान
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 3)Publication Date: 2021-03-18
Authors : प्रत्युष प्रशांत;
Page : 1-9
Keywords : शिक्षा; मुस्लिम महिलाएं; महिलाएं; स्त्री-पुरुष; असमानता।;
Abstract
भारतीय समाज में मुस्लिम महिलाओं या बच्चियों के शिक्षा ग्रहण करना चाहे वह कुलीन परिवार से ही क्यों न आती हो, औपनिवेशिक कालखंड में न हजम होने वाली बात थी। एक समाजिक सच्चाई यह भी थी मुस्लिम समाज में उस दौर में पुरुषों के पास भी स्कूली तालिम बहुत कम थी, वहां दीन-मज़हबी तामिल पर अधिक जोर था। कुरान के आयत बोलने के बाद आमदनामा(क्रिया के प्रयोग से जुड़ी किताब), सादी, गुलिस्तान और बुस्तान जैसी किताबों ही आली तालीम के बाद विनम्र बनने पर अधिक जोर था। इस महौल में बेगम रुकैया का मुस्लिम महिलाओं के लिए तामिम के लिए आगे आना अंधेरे में चिराग जलना ने के बराबर था जिससे उनका भी जीवन रोशन हुआ और मुस्लिम समाज के लड़कियों का भी।
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Last modified: 2021-06-21 01:24:34