‘‘राजीव गाँधी जल प ्रबधंन मिषन का ग्रामीण क्षेत्रा ें म ें आर्थिक योगदान‘‘
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.3, No. 9)Publication Date: 2015-09-29
Authors : बी.एस. निगवाले;
Page : 1-5
Keywords : जल ही जीवन; जल प ्रब ंधन मिषन; आर्थिक या ेगदान; रोजगार के अवसर।;
Abstract
भारतीय क ृषि मानसून का ज ुआं ह ै और यह ज ुआं भारतीय अर्थ षास्त्र और भारतीय जनता सनातन काल स े अपन े कंध े पर रखे ह ुए षून्य में ताक रही ह ै। वस्त ु स्थिति यह है कि जल के अभाव मे भारतीय कृषि ही क्या भारत के उद्योग धंधें, कल-कारखान े, और समूची अर्थव्यवस्था ही ठप हो जाती ह ै। पानी के अभाव मे ं गहराता विद्युत संकट, स ूख े पड ़े खेत आ ैर ब ंद पड ़े कल-कारखानों न े एक ओर हमार े राष्ट ªीय उत्पाद को प ्रभावित किया है वहीं द ूसरी तरफ हमारा अंतर्राष्ट ªीय निर्यात भी गड ़बड ़ाया है। फलतः एक आ ेर विद ेषी मुद ्रा की कमी की आप ूर्ति और द ूसरी ओर वर्त मान समस्याओं से निपटन े के लिए भारी वित्तीय प ्रब ंधन। ”जल जो न होता तो ये जग जाता जल।” हमार े यहाॅँ षास्त्रों में जल को “आदि-षक्ति”, अमृत आदि कहा गया है। समस्त संसार जल के बिना अधुरा है। जल मानव षरीर का ही अंग नही अपित ु जीव-जन्त ु प ेड ़-पा ैधे, आदि सजीव चित्रा ें का एक अंग ह ै और जल के बिना सभी जीव-जन्त ु प ेड ़ पौधे अर्थात सभी सजीव प्राणी जिसमें मन ुष्य भी षामील हैॅ समाप्त हो जाय ेंगे ं। द ेष में अथाह जल भण्डार होत े हुए भी हमें जल संचय की जरूरत क्यों पड ़ रही है? इस विषय पर गंभीर विचार कर ंे ता े र्कइ महत्वप ूर्ण पहलु सामन े आत े है। जल समस्या क े पिछे जल का प्रद ुषण ही नही अपित ु जल का अनियंत्रित एव ं अन ुचित द ुरूपयोग भी कारण है। वास्तव में जल को अब एक द ुर्ल भ उपयोगी संसाधन मान लेना ही उचित होगा।
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Last modified: 2017-09-25 18:17:15