प्राक ृतिक संसाधनों क े संरक्षण म ें समाज की भ ूमिका
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.3, No. 9)Publication Date: 2015-09-29
Authors : रान ू उपाध्याय;
Page : 1-3
Keywords : प्राक ृतिक संसाधनों क े संरक्षण म ें समाज की भ ूमिका;
Abstract
भारतवर्ष में प ्राचीन शास्त्रों, व ेद-पुराणों मे ं, धर्म ग्रन्थो में तथा ऋषि-मुनियों न े पर्या वरण की शुद्धता पर अधिक बल दिया है । व ेदों में प ्रकृति प ्रदत्त पर्या वरण को द ेवता मानकर कहा गया है कि- ‘‘या े द ेवा ेग्नों या े प्सु चो विष्वं भ ुव नमा विव ेष, यो औषधिष ु, या े वनस्पतिषु तस्म ें द ेवाय नमो नमः'' अर्था त जा े स ृष्टि, अग्नि, जल, आकाष, प ृथ्वी, और वाय ु से आच्छादित ह ै तथा जो औषधियों एव ं वनस्पतिया ें में विद्यमान ह ै । उस पर्यावरण द ेव को हम नमस्कार करत े है । प्रकृति मानव पर अत्यंत उदार रही ह ै । पृथ्वी पर अपन े उद्वव के बाद से ही मानव अपन े अस्तित्व के लिय े प्रकृति पर निर्भर रहा है । मानवीय आवष्यकताओं की प ूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के साधना ें की आवष्यकता होती है इन संसाधनों द्वारा ही मानव की म ूलभूत आवष्यकताए ं रोटी, कपड ़ा एव ं मकान की प ूर्ति होती है । इन साधनो ं के अभाव म ें सुखद मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है ।
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Last modified: 2017-09-25 19:19:07