‘‘रेडिया ेधर्मी प्रदूषण का बढ ़ता दायरा’’ मानव क े लिए अभिषाप
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.3, No. 9)Publication Date: 2015-09-29
Authors : राकेश कवच; े किरण बड ेरिया; आलोक गोयल;
Page : 1-3
Keywords : ‘‘रेडिया ेधर्मी प्रदूषण का बढ ़ता दायरा’’ मानव क े लिए अभिषाप;
Abstract
पर्यावरण प्रद ूषण एक ए ेसी सामयिक समस्या है जिसमें मानव सहित जैव जगत ् क े लिए जीवन की कठिनाईया ँ बढ ़ती जा रही हैं। पर्यावरण के तत्त्वो ं में गुणात्मक ह ्रास के कारण जीवनदायी तत्त्व यथा वायु, जल, मृदा, वनस्पति आदि के न ैसर्गिक गुण ह्रसमान होत े जा रहे हैं जिससे प्रकृति और जीवों का आपसी सम्बन्ध बिगड ़ता जा रहा ह ै। यह सर्व ज्ञात है कि पर्यावरण प्रद ूषण आध ुनिकता की द ेन है। वैसे प्रद ूषण की घटना प्राचीनकाल में भी हा ेती रही ह ै लेकिन प्रकृति इसका निवारण करन े में सक्षम थी, जिससे इसका प्रकोप उतना भयंकर नहीं था, जितना आज है। च ूँकि आज प ्रद ूषण की मात्रा प ्रकृति की सहनसीमा को लाँघ गई ह ै फलतः इसका प्रभाव संकट बिन्द ु के समीप पह ुँचन े लगा है। पर्यावरण प्रद ूषण स े जल और वायु जैस े जीवनदायी तत्त्व अपनी न ैसर्गिक गुणवत्ता खोत े जा रहे हैं, वनस्पतियाँ विनष्ट हा ेती जा रही हैं, मा ैसम का स्वभाव बदल रहा ह ै और मानव विविध बीमारियों के चंगुल में फँसता जा रहा है। यह जैव जगत ् के लिए अपषक ुन है, क्योंकि पर्यावरण ह्रास से पारिस्थितिकी विनाष के राह में उन्मुख ह ै। वैज्ञानिकों का मानना ह ै कि अगले 50 वर्षा ें तक यदि प्रद ूषण की यही गति बनी रही तो महाप्रलय आ सकता ह ै। पष्चिमी आ ैद्या ेगिक क्रान्ति न े मन ुष्य का े इस हद तक संव ेदनहीन बना दिया है कि वह जिस डाल पर बैठा है उसी को काट रहा है। विकसित द ेषा ें के कुछ वैज्ञानिक यह कहन े के लिए बाध्य हुए हैं कि पष्चिम के प्रगतिषील राष्ट ª, प्रद ूषण का निर्यात गरीब विकासषील द ेषों में कर रहे ह ैं।
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Last modified: 2017-09-25 19:16:38