लौकिक संस्कृत साहित्य में सौन्दर्य शास्त्रीय चिन्तन का स्वरूप
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.7, No. 11)Publication Date: 2019-11-30
Authors : श्रुति कक्कर;
Page : 270-273
Keywords : लौकिक; सौन्दर्य; स्वरूप;
Abstract
रामायण में कला के लिए ''शिल्प'' शब्द का प्रयोग हुआ है तथा उसका अर्थ ललित कलाओं से लिया गया है। इस समय कला को अत्यन्त पवित्र स्थान प्राप्त था वह केवल मनोरंजन के साधन के रूप में प्रयुक्त नहीं होती थी। बालकाण्ड के छठे सर्ग में वाल्मिकी ने अयोध्या के नागरिकों का जो वर्णन किया है उससे पता चल जाता है कि वह कितने सुसंस्कृत, कलाभिज्ञ, सौन्दर्यप्रिय एवं सहृदय नर-नारी थे।उस समय के इस कला प्रवण सौन्दर्य-प्रिय समाज के प्रभाव से राम भी अछूते नहीं रह गये थे क्योंकि एक प्रसंग में महामुनि ने राम को वैहारिकाणां शिल्पानां ज्ञाता कहा है अर्थात् राम को मनोरंजन के प्रयोग में आने वाली संगीत, वाद्य, चित्रकला आदि शिल्पों की जानकारी थी। वाल्मीकि ने चित्रकला, वास्तुकला, संगीत, रंगमंच, नृत्य और स्थापत्य कला के विषय की पर्याप्त सामग्री प्रस्तुत की है।
Other Latest Articles
- 170TH BIRTHDAY OF I.P. PAVLOV (1849-1936) AND THE 105TH ANNIVERSARY OF THE NOBEL PRIZE (1904)
- संगीत का चित्रकला से संबंध
- EDUCATIONAL ENVIRONMENT OF MIDDLE-LEVEL SPECIALISTS AS INSTRUMENT OF HIGH QUALITY MEDICAL ASSISTANCE TO PATIENTS WITH MENTAL DISORDERS
- भारतीय धर्म और संस्कृति में कला का अन्तःसम्बन्ध
Last modified: 2020-07-18 20:53:42